पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/४०६

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विवाद पहिले फल जिसे हे परमेश्वर तू ने मुझे दिया लाया हूं से तू परमेश्वर अपने ईश्वर के श्रागे उसे रख देना और परमेश्वर अपने ईश्वर के आगे दंडवत करना ॥ ११ । और तू और लाबी और जो परदेशी तुम होवें मिल के हर एक भलाई पर जो परमेअर तेरे ईश्वर ने तुझे और तेरे घराने पर किई है अानंद करना॥ १२ । जब न तीसरे बरस जो दशांश का वरम है अपने समस्त बढ़तो के दशय अंश को पूरा किया है लावी और परदेशी और अनाय और विधया को दिया है जिसने वे तेरे फाटकों के भीतर खावं और हप्त हो ॥ १३ । नब तू परमेश्वर अपने ईश्वर के आगे यां कहना कि मैं अपने घर से पवित्र वसे लाया और लावी और परदेशी और अनाय और विधवा को तेरी समस्त प्रान्ना के समान जो तू ने मुझे किया और मैं ने तेरी आज्ञा से विरुद्ध ग किया और न उन्हें भता। १४ । और मैं ने उस में से अपने विपक्मि में न खाया और मैं ने उस में से किसी अगुइ बात में न उठाया और न कुछ मृतक के लिये दे डाला परंतु मैं ने परमेश्वर अपने ईश्वर के शब्द को माना और जो कुछ नू ने मुझे अाज्ञा किई है मैं ने उन सभों के समान किया। १५ । अपने पवित्र निवाम सर्ग पर से नीचे दृष्टि कर और अपने इसराएल लोगों को और इस देश को जिसे तू ने हमें दिया है आशिघ दे जैसी तू ने हमारे पितरों में किरिया खाई एक देश जिस में दूध और मधु बहता है ॥ १६ । आज के दिन परमेश्वर तेरे ईश्वर ने तुझे इन विधिन और विचारों को पालन करने की आज्ञा दिई इस लिये उन्हें पालन कर और अपने सारे मन और अपने सारे प्राण से उन्हें मान। १७ । नू ने आज के दिन मान लिया है कि परमेम्वर मेरा ईम्वर है और में उस के मार्ग पर चलंगा और उस की विधिन को और उस की आज्ञाओं को और उस की व्यवस्था को पालन करूंगा और उस के शब्द को सुनूंगा ॥ १८। और परमेश्वर ने भी आज के दिन मान लिया है कि तू उस का निज लोग हेाचे और तू उस की समस्त प्राज्ञा का पालन करे॥ १६ । और तुझे समस्त जातिगणों से जिन्हें उस ने उत्पन्न किया बड़ाई और नाम और प्रतिष्ठा में अधिक बढ़ावे और कि तू परमेश्वर अपने ईम्बर का पविच लोग होवे जैसा उस ने कहा।