पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/४०३

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२५ पर्व पुस्तक मत लेट रह ॥१३ । किसी भांति से जव सूर्य अस्त होने लगे उस का बंधक उसे फिर देना जिप्सत बुह अपने बस्त्र में वे और तुझे आशीष देवे सेर मुझे परमेश्वर तेरे ईश्वर के आगे धर्म होगा ॥ १४ । ऐसा न हो कि तू कंगाल और दौन वनिहार को सतावे चाहे वुह वेरे भाई में से हो अथवा मेरे परदेशियों में से नो नरे देश में तेरे फाटकों में रहते हैं। १५ । तू उस दिन सूर्य अस्त होने से पहिले उस को बभी दे डालना क्योंकि दरिद्र है और उस का मन उसी में है न हो कि परमेश्वर के भागे तुझा पर दोष देवे और तझ पर पाप ठहरे। १६ । संतान की मनी पिलर मारे न जावें न पितरों की संती संतान मारे जावें हर एक अपने ही पाप के कारण मारा जायगा । १७। तू परदेशी और अनाथ के विचार को मत विगाड़ और विधवा का कपड़ा बंधक मत रख ॥ १८। परंतु चेत कर कि तू मिस्त्र में बंधुआ था और परमेश्वर तेरे ईश्वर ने तुझे वहां से छुड़ाया इस लिये मैं तुझे यह कार्य करने की प्राज्ञा करता हूं ॥ १६॥ जब तू अपने खेत में कटनी करे और एक गट्टो खेत में भूलके छूट जाय तो उस के लेने को फिर मत जा वह परदेशी और अनाथ और विधवा के लिये रहे जिसने परमेश्वर तेरा ईश्वर नेरे हाथ के समस्त कार्यों में तुझे श्राशीष देवे॥ २० । जब तू अपने जलपाई के वृक्ष को झोरे तो फिर के उस की डालियों को मत भाड़ वुह परदेशी और अनाथ और विधवा के लिये रहे ॥ २१ । जब तू अपनी बारी के दाख एकट्ठा करे तो उस के पीछे मत बीनना वुह परदेशी और अनाथ और विधवा के लिये रहे। २२। अब चेत कर कि तू मिस्र के देश में बंधुआ था इस लिये मैं तुभे यह कार्य करने को आज्ञा देता हूं। २५ पचीसो पब । यहि लोगों में झगड़ा होवे गार धर्म सभा में पावे कि न्यायी उन का २। और यदि वुह दुष्ट पीटे जाने के योग्य होवे तो न्यायो उसे लेटवावे और जैसा उस का अपराध होय न्यायी अपने आगे ठहराये हुए के समान उसे पिरावे। ३। चालीस कोड़े मारे और उसो बढ़ती नहीं