पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/४०१

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को पस्तक न आवे॥ ११ । परंतु मंध्या के समय में जल से स्नान करे और जब सूर्य अस्त हो चुके तब छावनी में आवे ॥ १२ । और छावनी के बाहर एक स्थान होगा वहां बाहर निकल के जाया करना । १३ । और तेरे पास हथियार पर एक खंती होय और जब तू बाहर जाके बैठे तो उस्से खोदना और मल को ढांय देना। १४। इम लिये कि परमेश्वर तेरा ईश्वर तेरौ छावनी के मध्य में फिरता है कि तो बचाने और तेरे बैरियां को तेरे वश में करे से तेरी छावनी पवित्र रहे न होवे कि बुह तेरे मध्य में किसी वस्तु की अशुद्धता देखे और तुझ से फिर जाय॥ यदि किसी का सेवक अपने खामी से भाग के नझा पास आवेत उसे उम् के खामी को मन सौंप ॥ १६। बुह तेरे स्थानों में से जहां चाहे नहां नेरे साथ रहे तेरे फाटकों में से किमी एक में जो उसे अच्छा लगे तू उसे कश मत देना ॥ १७ । इसराएल की बेटियों में वेश्या न हे न इसराएल के बेटों में पुरुषगामी हो॥ १८॥ तू किसी छिनाल की कमाई अथवा कुत्ते का मेल किसी मनाती में परमेश्वर अपने ईश्वर के मंदिर में मत लाइयो कि ये दोनों परमेश्वर तेरे ईश्वर से विनित हैं। १९ । तू अपने भाई को बियाज पर ऋण मत देना रोकड़ अनाज अथवा और कोई बस्तु जो बियाज पर दिई जाती है बियाज पर मत देना ॥ २० । परदेशौ को विधाज पर उधार दे सके परंतु अपन भाई को बियाज पर उधार मत देना जिसने परमेश्वर तेरा ईश्वर उस देश में जिस का नू अधिकारी होने जाता है जिम जिम काम में तू हाथ लगावे तझे आशीष देवे। २१। जब तू ने कोई मनौनी परमेश्वर अपने ईश्वर के लिये मानी उसे परा करने में विलम्ब मत कर दूम लिये कि परमेश्वर तेरा ईश्वर निश्चय तुझ से उस का लेखा लेगा और तुझ पर पाप ठहरेगा ॥ २२ । परंतु यदि तू कुछ मनाती ना माने तो अपराधी नहीं। २३ । जो कुछ तेरे मुंह से निकला अर्थात् बांछा की भेट जैसा तू ने परमेश्वर अपने ईश्वर के लिये मानी है जिसे त ने अपने मुंह से प्रण किया है उसे मान और पूरी कर । अपने परोमी के दाख की बारी में जावे नब जितने दाख चाहे अपन। इच्छा भर खा परंतु अपने पात्र में भत रख ॥ २५ । जब तू अपने परोसी [A. D. S.] G २४ । जब 50