पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/३८५

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को पुस्तका १४ पर्य] पंचा और लक्ष्मी पंचा और कोइल और भांति भांति के मिकरा॥ १६ और कोटा पेंचा और उस और राजहंस ॥ १७॥ और गरुड़ और बासा और मकरंग। १८। और सारम और भांति भांति के बगुले और टिटिहरी और चमगुदर ॥ १६। और हर एक रंगवैया जो उड़ता है तुम्हारे लिये अशुद्ध है वे खाये न जावें ॥ है वे खाये न जावें ॥ २. समस्त पवित्र पक्षी खाइयो। २१। जो कुछ श्राप से मर जाय उसे मत खाइयो न उसे किसी परदेशो को जो तेरे फाटकों में है खाने को दीजियो अथवा किसी विदेशी के हाथ बेच डालिया क्योंकित परमेश्वर अपने पर का पविब लोग है न मेना को उस को माता के दूध में मत उसिनना॥ २२ । बरस बरम जो बौज तेरे खतो में उगे तू निश्चय रस का अंश दिया कर। २३। तू परमेश्वर अपने ईश्वर के आगे उस स्थान में जिसे बुह अपने नाम के लिये चुनेगा अपने अन्न का अपनी मदिरा का अपने तेल का अपने ढार और अपनी झंड के पहिलोठो के अंश को खाया जिसने न सर्वदा परमेश्वर अपने ईश्वर से डरना सोखे । २४॥ और यदि मार्ग तेरे लिये अति दूर होवे यहां लो कि न उसे न ले जा म के यदि वह स्थान जिसे परमेश्वर तेरे ईश्वर ने चुना जिसने अपना नाम वहां स्थिर करे बहुत दूर होते तो जब परमेश्वर तेरा ईश्वर तुझे आशीष दवे ॥ २५ । तब त उन्हें बेच के उन का रोकड़ अपने हाथ में ले के उस स्थान को जा जा तेरे परमेश्वर ने सुना है। २६ । और उम रोकड़ से जिस वस्तु को तेरा मन चाहे मोल ले गाय बैल अथवा भेड़ अथवा दाखरस अथवा मद्य अथवा जो बस्तु तेरा जोध चाहे तू और तेरा घराना परमेश्वर अपने ईश्वर के आगे खाय और आनंद करै। २७। और जा लायौ तेरे फाटकों में है उसे न्याग मत करिया क्योंकि उम का भाग और अधिकार तेरे साथ नहीं है। २८। तीन बरस के पौछ अपनी बढ़ती का समस्त दसवां भाग उमौ बरस लाइयो और अपने फाटकों के भीतर रिया। २६। और इस कारण कि लायो तेरे संग भाग और अंश नहीं रखता है और परदेशी और अनाथ बार विधवा जो तेरे फाटकों में हैं प्रा और खायें और हम हेव जिसने A. B. S.) 48