पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/३८१

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१२ पर्च] की पन्तक। १४। परंतु उसी स्थान में जिसे परमेश्वर नेरो गाडियों में से उन लेगा नू अपनी भेंट चढ़ाइयो और सब कुछ जा मैं तुझे आज्ञा करता हं बही कोजियो॥ १५ । और जिम बस्तु के चाहे अपने समस्त फाट में मार खाइयो और परमेश्वर अपने ईश्वर के आशोष के समान ज्ञा उम ने तुझे दिया है चाहे पावन हो चाहे अपारन हर एक उसे खाये जेसे हरिण और बारहमींगा जा कुछ तेरा मन चाहे॥ १६ । केवल होह मत खाइया परंत उसे पानी की नाई भूमि पर ढाल दीजियो। १७। अपना अनाज और दाख रन और ते न का वाई मां अंश और अपने ढा र अथवा मुड के पहिनोट अथवा अपनी मानी हुई मनातो चोर अपनी यांका की भर अथवा अपने हाथ के हिसाने की भर अपने फाटकों में मत खाइयो। १८। परंत तझ पर और ले रे बटा बेटो और तेरे दाम और तेरी दामी पर और नानी पर जा नेरे पाटकों में हैं उचित है कि उन बस्तुन को परमेश्रर अपने ईमार के लागे उक्त स्थान में जिसे परमेश्वर तेरा ईश्वर नुन्गा खाया और न परमेश्वर अपने ईश्वर के आगे अपने सब कामे में अानंद करिया। १६ । श्राप से चाकम रहिया जब लोन जोता रहे लावो को मन त्यागियो।। २.। जब परमेश्वर तेरा ईश्वर तेरे सियाने को बढ़ाने जैमा उस ने तुझ से प्रतिज्ञा किई है और न कहे कि में मांप खाऊंगा इम कारण कि तेरा जीव मास खाने का अभिन.पो हैनात मांस और हर एक बस्त जिसे तेरा जोत्र चाहे खाया। २१। यदि बुह स्थान जिसे परमेश्वर तेरे ईश्वर ने अपना नाम वहां रखने का चुन लिया तुझ से बहुत दूर होवे तो तू अपने दार और झुंड में से जा ईश्वर ने तुझे दिये हैं जैमा मैं ने तुझ श्राज्ञा किई है झारिया और अपने फार में जो तेरा जोक चाहे से साइया॥ २२। जैसा कि हरिण और बारासिंगे खाये जाते हैं तू उन्हं खाइया पवित्र और अपवित्र उन्हें समान खाय। २३। केवल चौकम होके लाहू मत खाद्या क्यांकि लोह जीव है और तुझ उचित नहीं कि मास के साथ जीव खाय । २४ । तु उसे मन खाया उसे पानी कोई भूमि पर डाल दोजिया ॥ २५ । न उसे मन खायो जिम में तेरा औरर नरे पीक तेरे बंश का भला होय जब कि तू चुह जा ईश्वर को दृष्टि में ठीक हं कर ।