पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/३७५

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१० पर्च की पन्तक। मैं ने परमेश्वर की विनतोकिई और कहा कि हे परमेश्वर प्रभ अपने लोग को और अपने अधिकार का जिन्ह तू अपने महत्व से छडा लाया तू अपनी भुजा के पराक्रम से मिस से निकाल लाया नाश न कर॥ २७॥ अपने सेवक अबिरहाम और इज़हाक और यअकब को मारण कर इस लोग की दिठाई और दुष्टता और पापों पर दृष्टि न कर॥ २८ । न हे।वे कि छह देश जहां से न हमें निकाल लाया कहे कि परमेश्वर मामों न था कि उन्हें उस देश में जिम के विषय में उन से बचा किई पहुंचावे और इस लिये कि बुह उन से डाह रखना या वुह उन्हें निकाल ले गया कि उन्हें बन में नाश करे। २६ बथापि वे तेरे लोग र नेरे अधिकार हैं जिन्हें तू अपने बड़े पराक्रम और बढ़ाई हुई, भुजा से निकाल लाया है। १. दसवां पचे। - समय परमेश्वर ने मुझे कहा कि अपने लिये पत्थर की देर ४। अपने लिये लकडी को एक मजपा बना। २। मैं उन पाटयों पर वे बात लिखूगा जा अगली पटियां पर थीं जिन्हें तू ने तोड़ डाला और तू उन्हें मंजषा में रखिया॥ ३। तब मैं ने शमशाद लकड़ी को मंजूषा बनाई और पन्थर के दो पटियां अगती को समान चोरी और उन दोनों पटियों को अपने हाथ में लिये हुए पहाड़ पर चढ़ गया। और रस ने पटियों पर अगले लिखे हुए के ममान वे दम बचन लिखे जो परमेश्वर ने पहाड़ पर आग के मध्य से मभा के दिन तुम्ह कहा था और परमेश्वर ने उन्हें मम दिया। ५। फिर मैं फिरा और पहाड़ पर से उतरा और उन पटियां को उम मंजषा में जिसे मैं ने बनाया था रकवा से वे पर मेश्रर की यात्रा के समान अब ले उम में हैं। ६। तब इसराएन के समान ने यअकान के संतान बिअरात से मैरमौरः को यात्रा किई, वहां हारून मर गया और वहीं गाड़ा गया और उन के बेटे इनिअजर ने याजक के पद पर उस के स्थान में सेवा किई। ७। वहां मे उन्हा ने जिदजाद को यावा किई वार जिदजाद से यतबतः को जो