पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/३६

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२९ उत्पति [१६ पर्व उमौ दिन परमश्वर ने अविराम से नियम करके कहा कि मैंने मिस की नदी से फुरात की बड़ी नदी ले यह देश तेरे बंश को दिया है। १६ । अर्थात् कैनी और कनजी और कदमूनी । २० । और हिती और फरिजी और रिफाइनी॥ २१ । और अमूरी और कनकानी और जिजाशी और यबूमी का देश । ५६ सेरन हबां पर्च। व अविराम की पत्नी सरी कोई लड़का उम के लिये न जनी और उस की एक मिसरी लोड़ी थी जिस का नाम हाजिरः था। २। तब सरी ने अविराम से कहा कि देख परमेश्वर ने मुझे जन्ने से रोका है में तेरी विनती करती है कि अब मेरी लौड़ी पास जाइये क्या जाने मेरा घर उन्मे बस जाय और अबिराम ने सरीकी बात मानी। से अबिराम के कनान देश में इस वरम निवास करने के पीछे उस की पत्नी सरी ने अपनी लौड़ी मिसरी हाजिरः को लिया और अपने पति अविराम को उस की पत्नी होने को दिया । ४। और उस ने हाजिरः को ग्रहण किया और बुह गर्भिणी हुई और जब उस ने आप को गर्भिणी देखा तो उस की स्वामिनी उस की दृष्टि में निंदित हुई ॥ ५ । नब मरी ने अबिराम से कहा कि मेरा दोष आप पर मैंने अपनी लांडी श्राप को दिई बार जब उस ने अपने को गर्भिणी देखा तो मैं उस की दृष्टि में निंदित हुई मेरे और आप के वीच परमेश्वर न्याय करे। ६ । नव अविराम ने मरी से कहा कि देख तेरी लाड़ी तेरे हाथ में है जा तुझे अच्छा लगे सो उस कर और जब सरी ने उस से कठिनता किई बुह जम के आगे से भाग गई॥ ५। और परमेश्वर के दूत ने एक पानी के मौत के घाम बन में उस सोने के पास जो सूर के मार्ग में है उसे पाया। ८। और उसे कहा कि हे सरी की लाड़ी हाजिरः तू कहां से आई है और किधर जायगी बुह बोली कि मैं अपनी स्वामिनी सरी के आगे से भागती ॥ ८ । और परमेश्वर के दूत ने उसे कहा कि अपनी सामिनी के पाम फिर जा और उस के बश में रह ॥ १.। फिर परमेश्वर के ने उसे कहा कि मैं तेरा बंश अन्यंत बढ़ाऊंगा ऐसा कि बुह बहुताई