पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/३५४

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विवाद हम से कहें कि हम किस मार्ग से यहां जायें और कौन कौन नगरों में प्रवेश कर ॥ २३। Jह कहना मुझे भाया और मैं ने तुम्में से गोष्टी पीके एक एक मनुष्य कर के बारह मनुष्य लिये ॥ २४ । वे चल निकले और पहाड़ पर गये और इसकाल की तराई में आये और उस का भेद लिया ॥ २५ । और वे उस देश का फल अपने हाथों में लेके हमारे पास उतर आये और संदेश ले आये और बोले कि परमेश्वर हमारा ईश्वर हमें उत्तम देश देता है॥ २६ । तयापि नुम चढ़ न गये परंतु परमेश्वर अपने ईमार की आज्ञा से फिर गये ॥ २७ । और तुम अपने तंबूओं में कुड़कुड़ा के बोले दूम कारण कि परमेश्वर हम से डाह रखता था हमें मित्र के देश से निकाल लाया कि हमें अमरियों के हाथ में कर के नाश करे। २८। हम कहां चढ़े हमारे भाइयों ने तो यों कहके हमारे मन का घटा दिया कि वे लोग तो हम से बड़े और जब हैं और उन के नगर बड़े हैं जिस की भी खर्ग लो हैं चौर इरम अधिक हम ने अनाकियों के बटों को यहां देखा ॥ २६ । तब मैं ने तुम्हें कहा कि मत डरो और उन से भय मत करो॥ ३० । परमेशर तुम्हारा ईश्वार जा तम्हारे बाग आगे जाता है वही तुम्हारे लिये लड़ेगा जैसा कि उन ने तन्हारी दृष्टि में तुम्हारे लिय मित्र में किया। ३१ । ौर अरण्य में जहां तुम ने देखा कि जैसा मनुष्य अपने बेटे को उठाता है वैसा परमेश्वर तुम्हारे ईश्वर ने सारे मार्ग में जहां जहां नुम गये तुम्हें उठाया है जब लो तुम इस स्थान में पाये ॥ ३२ । तथापि इस बात में तम ने परमेश्वर छपने ईश्वर की प्रतीति न किई ॥ ३३ । बुह रात के भाग में चार दिन को मेव में जिसन तुम्हें जाने का मार्ग बनावे मार्ग में तुम से मागे धागे गया जिनते लम्हारे लिये स्थान ठहरावे जहां अपने तंबू खड़े करो। ३४ । तब परमेश्वर ने तुम्हारी बातें सुनी और क्रु हुश्रा और किरिया खाके बौला ॥ ३५ । कि निश्चय इम दुष्ट पोढ़ी में से एक भी उस अच्छी देश को जिम के देने का में ने तुम्हार पितरों से किरिया खाई है न देखेगा ॥ ३६ । केबल यफुनः का बेटा कालिब उसे देखेगा और मैं बह देश जिम पर उस का पाव पड़ा उसे और उस के बंश को दऊंगा इस कारण कि वुह पर्णता से परमेश्वर के मार्ग ३७। और तुम्हारे कारण से परमेश्वर ने मुझ पर भी क्रुद्ध परचला।