पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/३५३

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२ पञ्च की पुस्तक । उसी समय मैं ने तुम्हें कहा कि में अकेला तुम्हारा बोझ नहीं उठा मक्ता । १०। परमेपर तम्हारे ईश्वर ने तुम्हें बढ़ाया और देखो तुम आज के दिन आकाश के तारों को नाई मंडली है। ॥ ११ । परमेश्वर तुम्हारे पितरों का ईशर तुम्हें दरसे भी सहस्र गुण अधिक बढ़ाते और जैसा उस ने तुम से कहा है तम्हें श्राशीष देवे । १२। मैं तुम्हारे परिश्रम और बोझ और झगड़ों को अकेला क्योंकर उठा मषं। १.३ । तुम बुद्धिमान और ज्ञानी और अपनी गाड़ियों में से प्रसिडू लोगों को लागो और मैं तुम पर प्राज्ञाकारी करूंगा ॥ १४। और 'तुम ने मझे उत्तर देके कहा कि जो कुछ न ने कहा है से पालन करने को भला है। १.५ । से मैं ने तुम्हारी गोष्ठिया के प्रधानों को बुद्धिमान और प्रसिद्धों को लिया और उन्हें तुम्हारा प्रधान सहस्रों का प्रधान और में कड़ा का प्रधान और पचास पचास का प्रधान और दस दम का प्रधान तुम्हारी गोष्ठियां में करोड़ा किया ॥ १६ । और उस समय मैं ने तुम्हारे न्यायियों को अाज्ञा करके कहा कि अपने भाइयों का विवाद सुना मनुष्य में और उस के भाइयों में और उस के साथ के परदेशियों में धर्म से न्याय करो। तुम मुंह देखा न्याय न करो तुम न्याय में किमी के रूप को मत मानो बड़े के समान कोटे की भी सुनियो तुम मनुष्य के रूप से न डरो क्योंकि न्याय ईभर का है और जो विषय तुम्हारे लिये कठिन हाय मेरे पास नागा मैं उसे सुन्गा॥ १८ । मब जा तुम्हें करना था मैं ने उसी समय में तुम्हें आज्ञा किई। १६ ! और हम ने हरिब से यात्रा किई तो जैसी परगेश्वर हमारे ईश्वर ने हमें आज्ञा किंई थी इस समस्त महा भयंकर बन में गये जिसे तुम ने अमरियों के पहाड़ को जाते हुए देखा और कादिशबरनी में आये॥ २.। और मैं ने तुम्हें कहा कि तुम अमरिया के पहाड़ का पहुने हो जा परमेश्वर हमारा ईमार हमें देता है ॥ २१॥ देख परमेश्वर तेरे ईमार ने यह देश तेरे आगे घरा चढ़ और उसे वश में कर जैसा परमेश्वर तेरे पितरों के ईश्वर ने तुझ आन्ना किई है मत डर और हियाब न छोड़ ॥ २२। तब हर एक नुम्म से मुझ पास आया और बोला कि हम अपने आगे लोग भेज गे वे हमारे लिये उस देश का भेद लेव यार थाके [.1. B. 5.