पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/२५

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1 जी की पुस्तक और ठंड और तपन और ग्रीष्म और शीन और दिन और रात थम न जायंगे। ( नवां पर्य। र ईश्रर ने नूह को और उस के बेटे को आशीष दिया और उन्हें कहा कि फला और बढ़ा और पृथिवी को भरो॥ २। और तुम्हारा डर और भय पृथिवी के हर एक पशु पर और आकाश के हर एक पंक्यिों पर उन सभी पर जो प्रथिवी पर चलते हैं और समुद्र की सारी मछलियों पर पड़ेगा वे तुम्हारे हाथ में सौंपे गये । ३ । हर एक जीता चलता जंतु तुम्हारे भोजन के लिये होगा में ने हरी तरकारी के समान सारी वस्तु तुम्हें दिई॥ है। केवल माम उन के जीव अर्थात उन के लोह समेत मत खाना ॥ ५। और केवल तुम्हारे लोह का तुम्हारे शरीरों के लिये मैं पलटा लेऊंगा हर एक पशु से और मनुष्य के हाथ से में पलटा ले जंगा हर एक मनुष्य के भाई से मनुष्य के प्राण का मैं पलटा लेऊंगा। ६ । जो कोई मनुष्य का लोहू बहावेगा मनुष्य से उस का लोहू बहाया जायगा क्योंकि ईश्वर के रूप में मनुष्य बनाया गया है । ७। और तुम फलो और बढ़ो और एथिवी पर बहुताई से जन्नोर और उस में बढ़ो। ८। और ईश्वर ने नूह को और टस के साथ उन के बेटों को कहा ॥ । कि देखो मैं अपना नियम स्थिर करता हूं तुम से और तुम्हारे वंश से तुम्हारे पीछे । १०॥ और हर एक जीवते जंतु से जो तुम्हारे संग है क्या पंछी और क्या हार और पृयिवी के मारे चौपायां से और सभी से जो नाव से बाहर जाते हैं पृथिवी के हर एक पशु लो॥ ११। और मैं अपना नियम तुम से स्थिर करूंगा फिर सारे शरीर बाढ़ के पानियों से नष्ट न किये जायंगे और फिर प्रथिवी को नष्ट करने के लिये जनमय न होगा॥ १२ चौर ईश्वर ने कहा कि यह उम नियम का चिन्ह है जर में अपने और तुम्हारे और हर एक जीवते जंतु के मध्य में जो तुम्हारे संग है परंपरा की पीढ़ी ला बांधता हूं। १३। में अपने धनुष को मेव पर रखता है ग्रैरर बुह मेरे और एथिवी के मध्य में नियम का चिन्ह होगा ॥ १.४। और जब में मेघ को पृथिवी के