पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/१२५

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भारी मुंह पर्व की पुस्तक । का ईश्वर तुझ पर प्रगट हुअा॥ ६। फिर परमेश्वर ने उसे कहा कि तू अपना हाथ अपनी गोद में कर और उस ने अपना हाथ अपनी गोद में किया और जब उस ने उसे निकाला तो देखा कि उस का हाथ हिम के ममान कोढ़ी था। ७। और उस ने कहा कि अपना हाथ फिर अपनी गोद में कर उम ने फिर अपने हाथ को अपनी गोद में किया और अप- नौ गोद से निकाला तो देखा कि जैसौ उस को सारी देह थी वुह वैसा फिर हो गया। । और एसा होगा कि यदि वे तेरी प्रतीति न करें और पहिले अाश्चर्य को न मानें तो वे दूसरे प्रार्थ के विश्वासी होंगे। । और एसा होगा कि यदि वे दोनों अचयों पर विश्वास न लाद और तेरे शब्द के श्रेोता न हो तो न नदी का जल लेके सूखी पर ढालिया और वुह जल जा तू नदी से निकालेगा सूखी पर लोह हे। ज यगा । ५.० । तब मूसा ने परमेश्वर से कहा कि हे मेरे मभु में सुबक्ता नहीं न ने। । धागे से और न जब से कि तू ने अपने दास से बात चीत किई परंतु मैं और भारी जीभ का हं॥ ११॥ तव ईम्पर ने उसे कहा कि मनुष्य के मुंह को किस ने बनाया और कौन गूंगा अथवा बहिरा अथवा दर्शी अथवा अंधा बनाता है क्या मैं परमेश्वर नहीं ॥ १२ । अब तू जा और मैं तेरे के साथ हूँगा और जो कुछ तुझे कहना है व सिखाऊंगा॥ १३। फिर उस ने कहा कि हे परमेश्वर में मेरी विनती करता है कि जिसे चाहे ना उसे भेज । १४ । तब परमेश्वर का क्रोध मूसा पर भड़का और उस ने कहा कि क्या तेरा भाई हारून लावी नहीं है मैं जानता हूँ कि बुह सुक्का है और देख कि चुह भी तेरी भेट को आता है और तुझे देखके अपने मन में हर्षित होगा ॥ १५ । और तू उसे कहेगा और उम के मुह में बात डालेगा और म नेर और उस के मुह के संग हंगा और जो कुछ तुम्हें करना है सो तुम्ह सिखाऊंगा ।। २६ । और लोगों पर वुह नेरा वक्ता होगा और वुह तेर मुह का संनी होगा और नू उस के लिय ईश्रर के स्थान होगा॥ १७। और यह छड़ी जिस्मत धाश्र्य दिखावेगा अपने हाथ में रखियो। १८। तब मूसा अपने ससुर यिनरू के पास फिर पाया और उसे कहा कि मैं तेरी बिनती करता हूँ कि मुझे छुट्टी दे कि मिस में अपने भाइयो