पृष्ठ:धर्म्म पुस्तक.pdf/१०४

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उत्पनि [४४ पद हर एक ने अपना बोरा खोला ॥ १२। और घुह बड़के से प्रारंभ करके छुट के ला हूंढ़ने लगा और कोरा बिनयमीन के थैले में पाया गया । १३। तब उन्हों ने अपने कपड़े फाड़े और हर एक पुरुष ने अपना गदहा लादा और नगर को फिरा॥ १४ । और यहूदाह और उस के भाई यूसुफ के घर आये क्योंकि वुह अब लेां बहीं था और वे उस के आगे भमि पर गिरे। १५ । तब यमुफ ने उन्ह कहा कि तुम ने यह फैमा काम किया क्या तुम न जानने थे कि मेर एसा जन निश्चय गणना कर मक्ता है । १६ तब यहूदाह बोला कि हम अपने प्रभु से क्या कह और क्या बाल अथवा क्यांकर अपने को निषि ठहरावे ईश्वर ने आप के सेवकों को बुराई मगर किई देखिये कि हम और चुह भी जिस पान कटोरा निकला अपने प्रभु के दास हैं। १७। तब वुह बोला ईश्वर न कर किन एमा करूं जिस जन के पास कटोरा निकला बही मेरा दास होगा और तुम अपने पिता पास कुशल से जावे ॥ १८। तब यहूदा ह उस पास आक बाला कि हे मेरे पभु आप का सेवक अपने प्रभु के कान में एक बात कहने की आज्ञा पावे और अपने सेवक पर आप का काप भड़कने न पाये क्याकि श्राप फिरजन के समान हैं। १६ । मेरे प्रभु ने अपन सेकका से यां कहके प्रश्न किया कि तुम्हारा पिता अथवा भाई है॥ २० । चार हम ने अपने प्रभु से कहा कि हमारा एक शुद्ध पिता हे और उस का बुढ़ापे का एक छोटा पुत्र है और उस का भाई मर गया और वुह अपनी माता का एक ही रह गया और वुह अपने पिता का अति प्रिय है॥ २१ । तब आप ने अपने सेवकों से कहा कि उसे मेरे पास लाये। जिसत मेरी दृष्टि उस पर पड़े। २२। तब हम ने अपने प्रभु से कहा कि बुह तरुण अपने पिता को छोड़ नहीं सक्ता क्योंकि जो वुह अपने पिता को छोड़ेगा तो उस कर पिता मर जायगा ॥ २३ । फिर आप ने अपने सेवकों से कहा कि जब लो तुम्हारा कुटका भाइ तुम्हारे साथ न आवे नुम मेरा न ह फिर न देखोगे ॥ २४। और यों हुआ कि जब हम आप के सेवक अपने पिता पास गये तो हम ने अपने प्रभु की बात उन्म कहीं॥ ३५ । तब हमारा पिता बोला फिर जायो और हमारे लिये छोड़ा अन्न मोल ले।। २६। तब हम बोले कि हम नहीं जा सके जो हमारा कुटका भाई