"वे भूली जा सकती हैं? चलकर देखो–चम्पा लगाया है मैंने। उसमें हर साल कलियाँ आती हैं और उनमें वे उँगलियाँ झाँक उठती हैं। फिर रात भर उनकी भीनी महक मेरी हर एक साँस को खुशबू से तरबतर कर देती है।"
"पागल तो आप नहीं हो गए भाईजान!"
"हो जाता, मेरी याद मर जाती, सब कुछ भूल जाता तो अच्छा था।"
"बहिन को ये सब बातें बताईं क्यों नहीं?"
"ये बातें बताईं नहीं जातीं। जानने वाले जान जाते हैं।"
कुछ देर बानू चुपचाप शून्य आकाश की ओर ताकती रही। फिर धीरे से बोली, "आपने दुनिया का इलाज किया–लेकिन अपना न कर सके।"
"कुछ बीमारियों में आराम होता ही नहीं।"
"खैर पूछिए जो पूछना चाहते हैं।"
"मुझे तुम सिर्फ एक बात कह दो बानू, कम से कम जब तक नवाब ज़िन्दा रहे तुम खुश रहीं?”
"मुझे देखकर आप कैसा समझते हैं?"
"बिल्कुल पत्थर, ठोस, जिसमें कहीं जान नहीं–साँस भी नहीं।"
"तो बस, इसी में समझ लीजिए।"
"समझ लिया है–तभी तो पूछता हूँ।"
"पूछने से फायदा?"
"हिसाब-किताब लगाकर देखूँगा बानू।"
"काहे का हिसाब-किताब भाईजान?"
"एक औरत की ताकत का। जानना चाहता हूँ कि आखिर एक औरत में कितनी ताकत होती है।"
"डाक्टरी किताबों में यह सब नहीं लिखा?"
"लिखा होता तो अपना इलाज न कर लेता? मर्ज़ को कलेजे में छिपाए क्यों फिरता?"
"तो समझ लीजिए–जैसी अट्ठाईस साल पहले गई थीवै–सी ही हूँ।"
"मेरा भी यही ख्याल था बानू। लेकिन क्यों? तुम्हें पाकर कोई कैसे इस तरह रह सकता है! नवाब क्या एकदम जानवर थे?"
"नहीं भाईजान, मैं खुश होती यदि एक जानवर के पल्ले बँधती–वह काटता, नोचता, खाता, बखेरता, झिंझोड़ता, दुःख-दर्द कुछ तो देता–अहसास का आखिर कुछ तो इस्तेमाल हो जाता।"
"जानवर नहीं थे नवाब, तब?"
"वहाँ जाने पर दो दिन में ही पता चल गया कि मेरी शादी एक मुर्दे से हुई है।"
डाक्टर के कलेजे में जैसे किसी ने पत्थर दे मारा। वे आह करके रह गए। फिर उन्होंने पागल की भाँति चीखकर कहा :
"उस मुर्दे को मरने में आठ साल लग गए–आठ साल तुम्हें वह लाश ढोनी पड़ी बानू?"