"बागड़बिल्ला है।"
"ठीक बताओ, नहीं तो हार मानो।"
"मान ली हार, अब जा तू।"
"देखोगे नहीं?"
"क्या?"
"वह चीज़।"
"ले जा, तू देख-भाल ले।"
"पीछे माँगोगे तो नहीं दूंगी।"
"पर है क्या?"
"मैं नहीं बताती।"
"मार खाएगी तू।"
"कौन मारेगा?"
"मैं मारूँगा।"
"नहीं, तुम नहीं।"
"तब कौन?"
"भाभी?" करुणा ने आँखों में हँसते हुए कहा।
दिलीप ने मारने को उठते हुए कहा, "जा, भाग, शैतान।" लेकिन करुणा ने हाथ पसारकर खत दिखा दिया।
"किसका खत है?"
"तुम बताओ।"
"मुझे क्या मालूम?"
"तो जाने दो।" वह चल दी। दिलीप ने कौतूहलाक्रान्त होकर कहा, "बता किसकी चिट्ठी है?"
"बताऊँ?"
"बता।"
"भाभी की।"
"दुत!" दिलीप ने जैसे झिड़कना चाहा पर उसकी आँखें फैल गईं। उसने कहा :
"देखू!"
"नहीं दिखाती, जाओ।"
"अच्छा, चल सुलह कर ले। ला दिखा किसकी चिट्ठी है?"
"भाभी की है।"
"झूठ।"
"तो देख लो।"
करुणा ने चिट्ठी दिलीप के हाथों में दे दी। दिलीप ने एक दृष्टि उस एक पंक्ति की चिट्ठी पर डालकर कहा, "तूने क्या उसे खत लिखा था?"
करुणा ने स्वीकार किया। दिलीप ने कहा :
"क्या लिखा था?"