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पर शिशिर ने सुना नहीं। नौ अगस्त को दिल्ली में मुकम्मिल हड़ताल थी। दुपहर के बाद पचास हज़ार व्यक्तियों का भारी जुलूस निकाला। घंटाघर से कोतवाली तक नरमुण्ड ही नरमुण्ड नज़र आते थे। भीड़ में शिशिर ने भाषण दिया। यह उसका पहला ही भाषण था। पर वह भाषण न था, अग्निबाण थे, जो किसी दैवी प्रेरणा से उस बालक के मुँह से निकल रहे थे। उसने कहा :

"भाइयो, जनता ने स्वतन्त्रता की ओर अपनी विद्रोह-यात्रा के लिए कदम उठा दिया है। अब तो हममें से प्रत्येक को कुछ करना है, बस करना या मरना। शासनसत्ता दमन पर उतारू है। कठिन परीक्षा की घड़ी है। वह हमें दमन के द्वारा दबाने का यत्न कर रही है। कायरहृदय काँप रहे हैं लेकिन यह क्रान्ति इस युग का तकाज़ा है। यह टाली नहीं जा सकती। सत्याग्रह और असहयोग से कानूनों की अवज्ञा करके अब हम सर्वाङ्गीण क्रान्ति के द्वार पर पहुँच गए हैं। अब हम विदेशी सत्ता के किसी कानून का नहीं–सम्पूर्ण सत्ता का विरोध कर रहे हैं। हमारी माँग अब किसी विशेष विधान के लिए नहीं है, बल्कि यह है कि अंग्रेज़ यहाँ से चले जाएँ। इसलिए आज हमें शपथ लेनी होगी इस बात की कि यह वर्ष हमारी दासता का अन्तिम वर्ष है। परन्तु हमारा शत्रु अभी तक हमारे बीच में बसा हुआ है। और हमारे दृढ़ संकल्प को तानाशाही तरीके पर कुचलना चाहता है। उसने हमारे पूज्य नेताओं को कैद कर लिया है, पर अब हमें नेता की क्या ज़रूरत है? अपना काम हम जानते हैं। अब हम इस स्वतन्त्र राष्ट्र के नागरिक हैं। बस, हमें दिल्ली के सरकारी भवनों पर से तथा लालकिले से भ्रष्ट यूनियन जैक को उतार तिरंगा राष्ट्रध्वज फहराना है। आओ, आज हम सब अपने काम बाँट लें...

"तुममें जो किसान हैं, वे उन ज़मींदारों को लगान न दें जो अंग्रेज़ों को मालगुजारी देते हैं। गाँवों में अपनी पंचायतें खड़ी करो, अदालतों का बहिष्कार करो। फसल या पशु मत बेचो। सरकारी नोट काम में मत लो। अदल-बदल से व्यापार करो। लुक-छिपकर लड़ाई के लिए तैयार रहो।

"तुममें जो मज़दूर हैं, वे कारखानों, रेलों, खानों और जहां वे काम कर रहे हों वहां काम की गति धीमी कर दें। गुप्त रीति से कारखानों को हानि पहुँचाएं। मज़दूरी, खाद्य और कपड़े के लिए लड़ें, हड़ताल करें। लुक-छिपकर लड़ाई के लिए तैयार रहें। तुममें जो विद्यार्थी हैं, वे स्कूल-कालेज छोड़ दें, लुक-छिपकर लड़ाई के दल तैयार करें। जो व्यापारी हैं, बैंकों से रुपया निकाल लें, अंग्रेज़ों से व्यापार बन्द कर लें। जो सैनिक हैं वे भारतीय राज्यतन्त्र की भक्ति की शपथ लें। देश के विरुद्ध हथियार न उठाएँ।"

"पुलिसवाले क्रान्ति के विरुद्ध कार्रवाई करने से इन्कार कर दें।

"प्रत्येक व्यक्ति अनधिकारी सत्ता को नष्ट करने पर तुल जाए।

"इन्कलाब ज़िन्दाबाद! करेंगे या मरेंगे!! अंग्रेज़ो, निकल जाओ!!!"

सहस्रों कण्ठों ने गर्जना करके इन नारों का साथ दिया। परन्तु इस वज्र-गर्जना में मिल गई बन्दूकों की गड़गड़ाहट। डिप्टी कमिश्नर ने पुलिस और सवारों का दल लेकर सभा को घेर लिया और गोली बरसाना शुरू कर दिया। कुछ मरकर गिर गए। कुछ भाग चले, कुछ तड़पने लगे। कुछ हारकर बैठे, और कुछ ने फिर गर्ज़ना की–इन्कलाब जिन्दाबाद! करेंगे या मरेंगे!! अंग्रेज़ो, निकल जाओ!!!