व्याप्त जाए। मैं कहूँगा, राष्ट्र के पास में जो कुछ है वह उसकी बाज़ी लगाने से भी न चूके। यह मेरे जीवन का अन्तिम संघर्ष है। मैं अंग्रेज़ों से कहूँगा कि वे समय रहते भारत छोड़ दें। और आपसे कहूँगा कि आज से अपने को स्वतन्त्र व्यक्ति समझें। और उसके लिए मर-मिटने को तैयार हो जाएँ।"
उसी दिन गाँधीजी-सहित सब चोटी के नेता कैद कर लिए गए। नौ अगस्त के प्रभात ही से देश में विद्रोह फैलने लगा। आकार, विस्तार, त्याग-बलिदान, संगठन-शक्ति, जनोत्साह, ध्येय, नीतिनिपुणता सभी दृष्टियों से।
वह महान् था। इसमें लगभग छ:-सात हज़ार आदमी मरे। एक लाख से अधिक जेल गए। एक करोड़ से भी अधिक रुपया जुर्माना हुआ। गाँव के गाँव वीरान हो गए। लगभग चार करोड़ आदमियों ने खुले रूप से इस विद्रोह में भाग लिया। यह खुला विद्रोह गोलियों की बौछारों के साये में खड़ा हुआ। एक हज़ार से ऊपर जगहों पर गोली चली। विद्यार्थियों ने लाखों की संख्या में इस आन्दोलन में योग दिया। देशी राज्यों तक इस विद्रोह की आग फैली। सारी दुनिया में दबे-पिसे व लुटे लोगों पर इसका गहरा असर पड़ा। नई स्फूर्ति और आशा का संचार हुआ। भारत के इस अभूतपूर्व संग्राम का परिणाम गर्वोन्नत जापान और जर्मनी के आत्मसमर्पण के परिणाम से कुछ भिन्न और विचित्र ही हुआ।
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डाक्टर-परिवार के सभी बच्चे जागरित ज्वलंत स्वभाव के थे। हमने बताया है कि शिशिरकुमार कांग्रेसी था। यद्यपि उसका विद्यार्थी-जीवन था, परन्तु इस आन्दोलन के नेता–बड़े नेताओं के जेल जाने पर-विद्यार्थी ही रह गए थे। अब तक उसने कांग्रेस में कभी सक्रिय भाग नहीं लिया था। परन्तु अब वह दिल्ली के जागरित जनों का नेता था। नेहरू जब बम्बई गए थे तो उन्होंने एक भाषण दिया था; उसमें का एक वाक्य शिशिर के कलेजे को बेध गया था। नेहरू ने कहा था–"हम समुद्र में डुबकी लगाने जा रहे हैं इस पार या उस पार!" बस, "इस पार या उस पार"–इस वाक्य को शिशिर नहीं भूला। उसने हज़ारों- लाखों बार इस वाक्य को दुहाराया।
और जब उसने सुना कि गाँधी और जवाहर दोनों ही, और उनके सैकड़ों साथी जेल में बन्द हो गए तो उसने मन-ही-मन कहा–डुबकी तो लग गई। अब इस पार या उस पार!
इस पार या उस पार–उसने होंठों में गुनगुनाया। कालेज की पुस्तकें उठाकर ताक पर रख दीं। उसने दिलीप के पास जाकर कहा, "भैया, जा रहा हूँ मैं, भारतमाता की पुकार हुई है। अब इस पार या उस पार!" दिलीप शिशिर को प्यार करता था। और इस समय उसका हृदय प्यार पीर से ओतप्रोत होकर अधिक कोमल हो रहा था। वह यद्यपि कांग्रेस से घृणा करता तथा गाँधीजी को 'हिन्दू-मुल्ला' कहता था, पर शिशिर के सामने कुछ नहीं कहता था। उसने कहा, "शिशिर, आग में न कूद। अभी डिग्री ले ले। कालिज का सब कैरियर तेरा बिगड़ जाएगा।"