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सख्त है।"

"और मेरा शायद आधा टिकट लगेगा।"

"तभी तो तुझे ले जा रहा हूँ, तेरा कहीं कोई एंगेजमेंट तो नहीं है इस इतवार को?"

"है क्यों नहीं, इसी इतवार को हम लोग लखनऊ जा रहे थे।"

"हम लोग, कौन?"

"मेरी सहेलियाँ हैं कॉलेज की।"

"कुछ खास मतलब था?"

"यों ही, अमीनाबाद में एक चाटवाला बैठता है बाबूजी, बहुत बढ़िया मटर की चाट बनाता है। मटर में नींबू निचोड़ता जाता है–और ऐसा मुँह बनाता है जैसे अपने मुँह में नीबू निचोड़ रहा हो। बस, ज़रा उसकी मटर की चाट खानी थी।"

"बस?"

"एक पिक्चर भी बढ़िया लग रही है।"

"जाने दे उसे, अगले इतवार देखना। अभी दिल्ली चल, तुझे बहुत बढ़िया कचालू की चाट खिलाऊँगा।"

"दिल्ली कोई काम है क्या बाबूजी?"

"काम कुछ ऐसा नहीं है, ज़रा डाक्टर साहब से मिलना चाहता था, खत आया है उनका।"

उन्होंने पतलून की दोनों जेबें टटोलीं और खत माया के सामने फेंक दिया।

खत पर सरसरी नज़र डालकर माया ने कहा, "डाक्टर साहब की अब खुशामद करनी होगी हमें बाबूजी?" उसके तेवर पर बल पड़ गए।

रायसाहब हँस दिए। उन्होंने कहा, "बेटी का बाप हूँ बेटी, बिना खुशामद किए तो इस घर से तुझे धकेलना मुश्किल है।"

"तो आप जाइए, मुझसे यह न होगा।"

"तुझे कुछ नहीं करना पड़ेगा। बस तमाशा देखना होगा।"

"मुझे तमाशा भी नहीं देखना।"

रायसाहब हँस दिए। उन्होंने कहा, "असल बात यह है बेटी, ज़रा साहबज़ादे का मिज़ाज तोलना चाहता हूँ। हाँ कहकर उन्होंने न कह दी। डाक्टर बहुत भले हैं—देखू तो मामला क्या है। फिर एक बार दिलीप से तू भी बात कर, उसका रंग-ढंग तो देख। बड़ा भारी ‘आर्थोडाक्स' (धर्मपरायण) है। मगर उसकी बहस बड़ी प्यारी होती है।"

"ममी को ले जाइए बाबूजी।"

"ममी को ले जाकर क्या करूँगा, बोल? राह में कहीं दिल का दौरा हो गया तो? फिर मेरी खटपट तेरे बिना कौन करेगा–बता। तेरे बाबूजी का काम तो तेरे बिना एक मिनट नहीं चल सकता।"

"तो फिर मुझे धकेलकर निकाल बाहर करने के लिए आप काहे को दुनिया की खुशामद करते हैं?"

"राशन का ज़माना है बेटी, पुराने ज़माने में जब सब चीजें सस्ती थीं तब भी बेटी किसी बाप के घर नहीं खपी—और अब तो रुपए का पौने दो सेर गेहूँ मिलता है। देखती है