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तुम्हीं से कह दूंगी।"

ज़ीनत बड़ी देर तक उसे छाती से लगाए रही। फिर उसने आँसू पोंछकर कहा—

"बड़ी हौसले वाली हो बानू, आफरीं। तो अब से हम-तुम एक हैं। मुसीबतों का मिलकर सामना करेंगी। अभी एक बात गाँठ बाँध लेना। बड़े अब्बा ने जो जायदाद तुम्हारे नाम की है उस पर नवाब का हाथ न लगने पाए, इसका ध्यान रखना।"

"जायदाद का अब मैं क्या करूँगी?"

"बस नादानी न करो, बड़ी बहिन जैसा कहे, वही करना।"

"वही करूँगी बहिन, अब तो तुम्हीं बहिन और तुम्ही माँ हो, और कहीं मेरी गत कहाँ है?" उसने ज़ीनतमहल के दोनों हाथ आँखों से लगाकर चूम लिए। ज़ीनत ने उसे कसकर छाती से लगा लिया।

10

कालचक्र घूमता ही गया और घटनाएँ जीवनों को धकेलती रहीं। डाक्टर अमृतराय के तीन बच्चे हुए—दो लड़के और एक लड़की। दिलीप कुमार राय अब तेरह वर्ष का था। भाइयों और बहिन की नज़रों में वह उनका बड़ा भाई था। परन्तु उसकी सूरत-शक्ल, बुद्धि और विचार-सत्ता सब कुछ उनसे नया निराला था। उसका रंग अत्यन्त गोरा, आँखें ज़रा भूरी, नाक उभरी हुई, पेशानी चौड़ी, बाल ज़रा लाली लिए हुए। जिस्म पतला-दुबला, लम्बा, मिज़ाज तेज़ और गुस्सैल, तबीयत ज़िद्दी और हाथ खुला था। अनुशासन उसे पसन्द न था। वह हर बात को मौलिक रीति पर सोचता-समझता था। भाइयों और बहिन को वह तुच्छ समझता, उनसे दूर रहता, हर चीज़ में वह अपना एक पृथक् अस्तित्व कायम रखना चाहता था। सम्भव है डाक्टर अमृतराय और उनकी पत्नी अरुणादेवी के हृदय में जो एक प्रच्छन्न भावना थी कि वह उनका अपना पुत्र नहीं है, और वह विजातीय मुसलमान बालक है, और वह बहुत भारी सम्पत्ति का स्वामी है—इससे उनके व्यवहार का कोई अज्ञात प्रभाव उस पर पड़ा हो। परन्तु यह तो निश्चय था कि माता-पिता और पुत्र के बीच जो एक गहरी आत्मीयता होती है वह उनमें न थी, परन्तु यह बात खूब पैनी दृष्टि से देखने पर ही दिख पड़ती थी। यों वह पिता का अदब और माँ को प्यार करता था।

डाक्टर के दोनों पुत्रों के नाम क्रमश: सुशीलकुमार राय और शिशिरकुमार राय थे। कन्या का नाम था करुणा। शिशिर और करुणा में खूब मेल-जोल था। शिशिरकुमार की तबीयत कुछ अनोखी थी। वह एक मस्त प्रकृति का बालक था। खेलने और पढ़ने में तेज़, मगर मिज़ाज का तीखा हाँ, दिलीप जैसा नहीं। दिलीप के रूठने, गुस्सा करने पर उसे मनाकर राज़ी करने का काम शिशिर को ही करना पड़ता था। लेकिन दिलीप शिशिर पर शासन करता था। प्यार कहीं उसकी आत्मा के कोने में था या नहीं, यह नहीं कहा जा सकता था। उसे प्यार करते, हँसते-बोलते, हिल-मिलकर रहते बहुत कम देखा गया था।

डाक्टर-दम्पती निस्सन्देह सब बच्चों को समान प्यार करते थे। फिर भी कहीं एक