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लेकिन इस सारी सुव्यवस्थित व्यवस्था में डाक्टर अमृतराय अव्यवस्थित हो गए। हुस्नबानू के प्रति गहरी आसक्ति ने उन्हें अभिभूत कर लिया। डाक्टर अमृतराय एक चरित्रवान्, बुद्धिमान् और ज़िम्मेदार आदमी थे। मर्यादा का उन्हें बहुत ज्ञान था। पत्नी अरुणा के प्रति उनमें गहरी आत्मीयता थी। इस घटना से प्रथम दोनों पति-पत्नी एक प्राण दो शरीर रहते थे। अरुणा को छोड़कर कोई दूसरी स्त्री भी संसार में है यह उन्होंने कभी जाना भी न था। परन्तु इस असाधारण संयोग में, एक विशिष्ट भावना के वातावरण के भंवर-जाल में फँसकर तथा हुस्नबानू के असाधारण रूप-माधुर्य, सुषमा, तेज और निष्ठा से वे जैसे एकबारगी ही अपना आपा खो बैठे। उन्होंने बहुत समय तक मन की पीड़ा को बहलाया। जब पीड़ा असह्य हुई और उसका असर उनके शरीर और चेष्टाओं पर पड़ने लगा, तो वे असंयत हो गए। कभी एक आह और कभी गहरी नि:श्वास निकल जाती, हँसी उनकी विद्रूप और निष्प्राण हो गई। दृष्टि सूनी, प्राण व्याकुल और मन हाहाकार से भर गया। डाक्टर का यह भाव-परिवर्तन देखा औरों ने भी, पर सबसे अधिक देखा हुस्नबानू ने और उसके बाद अरुणा ने। परन्तु समझा दोनों ने भिन्न-भिन्न रूपों में। अरुणा को सन्देह हुआ कि कोई शरीर व्याधि है। उसने बहुत बार पूछा और डाक्टर ने वैसी ही निष्प्रभ हँसी में उसे टाल दिया। परन्तु वे महामेधाविनी हुस्नबानू को भुलावे में न रख सके और एक दिन दोनों खुलकर बातें हुईं।

हुस्नबानू ने कहा:

"भाईजान, क्या आप मेरे इस तरह पुकारने पर नाराज़ होंगे?"

“जी नहीं!" डाक्टर ने घबराकर कहा।

"तो फिर सिर्फ 'नहीं' कहिए, ‘जी नहीं' नहीं। और अगर मैं आपको 'तुम' कहकर पुकारूँ?"

"तो तो मैं समझूगा, तुमने मुझे निहाल कर दिया, जीवन-दान दे दिया!"

“शुक्रिया, पहल तुम्हीं ने की। लेकिन मैंने सुना है, आप सात विलायत घूम आए हैं?"

“यों ही, आदतन घुमक्कड़ हूँ। इंग्लैंड जब डिग्री लेने गया तो एक डिग्री अमेरिका की भी ले लूँ, यह इच्छा हुई। इसी सिलसिले में दूसरे मुल्कों की भी सैर हो गई।"

"तब तो मुझे समझना चाहिए कि दुनिया की ऊँच-नीच, भलाई-बुराई और अपना नफा-नुकसान आप बखूबी समझ सकते हैं।"

"लेकिन मैं कोई ज़्यादा समझदार आदमी नहीं हूँ।"

"हो सकता है, लेकिन नासमझ होना कोई तारीफ की बात नहीं है भाईजान, खास कर आप जैसे जहाँदीदा आदमी के लिए।"

“क्या कहीं मुझसे कोई गलती हो गई बानू? क्या मैंने तुम्हें नाराज़ कर दिया? कहो, यदि ऐसा है तो कभी अपने को माफ न करूँगा।"

“नाराज़ नहीं, मुझे तुमने तकलीफ दी है, और मेरी यह तकलीफ मेरे लिए नहीं, तुम्हारे लिए है। तुम, मुमकिन है अपने को माफ न करो, कोई सज़ा ही अपने ऊपर लो, तो