"आप रंगमहल वाले नवाब मुश्ताक अहमद सालार जंग बहादुर हैं?" डाक्टर ने कुछ झिझकते हुए और आदर प्रदर्शित करते हुए कहा।
“जी हाँ, और आपके वालिद मरहूम-खुदा उन्हें जन्नत दे—मेरे गहरे दोस्त थे। मेरी ही सलाह से उन्होंने आपको विलायत पढ़ने को भेजा था।"
“मैं अच्छी तरह हुजूर के नाम से वाकिफ हूँ। पिताजी ने मुझसे अक्सर आपका ज़िक्र किया है, और यह भी बताया था कि आप ही ने मेरी विलायत की तालीम का कुल सर्फा उठाया था। वे मरते दम तक आपका नाम रटते रहे, लेकिन मुलाकात न हो सकी। आप शायद यहाँ अरसे से नहीं रहते हैं?"
“जी हाँ, मैं अरसे से कराची में रह रहा हूँ। कल ही हम लोग मंसूरी से यहाँ आए हैं। इधर कई साल से मैं गर्मी में मंसूरी ही रहता हूँ।"
“आपने दर्शन देकर कृतार्थ कर दिया। अब फरमाइए, आपकी क्या सेवा मैं कर सकता हूँ?”
"शुक्रिया!” नवाब ने अजब अन्दाज़ से सिर झुकाया, आँखें बन्द कीं और क्षण-भर कुछ सोचा, फिर जैसे एकाएक साहस मन में लाकर कहा, “यह मेरी पोती शाहज़ादी हुस्नबानू है। माँ-बाप इसके कोई नहीं हैं। मेरी भी अब कोई दूसरी औलाद नहीं है। यही वारिस है। बात इसी के मुतल्लिक होगी।"
“मर्ज़ क्या है?" डाक्टर ने सहज स्वभाव से पूछा।
“मर्ज़? मर्ज़ बेआबरुई।'
डाक्टर कुछ भी न समझ सका। उसने अचकचाकर बाला की ओर देखा जो इस समय बुर्के के भीतर पीपल के पत्ते के समान काँप रही थी, फिर उसकी प्रश्नसूचक दृष्टि नवाब के चेहरे पर अटक गई।
बूढ़े ने अब अकंपित वाणी से कहा, “शायद इस नए मर्ज़ का नाम आपने अभी न सुना हो। आप बड़े डाक्टर तो ज़रूर हैं, पर नए हैं, नौजवान हैं। ज़िन्दगी सलामत रही तो आप देखेंगे कि ऐसी बीमारियाँ आम होती हैं, खासकर बड़े घरों में तो यह बेहद तकलीफदेह हो जाती हैं।" एक दार्शनिक-सा भाव उसकी आँखों और होंठों में खेल गया। डाक्टर उलझन में पड़ गया। उसने कहा, “मेहरबानी करके ज़रा साफ-साफ कहिए, मामला क्या है?"
“यही मुनासिब भी है। लड़की हामिला है। उम्र इसकी बाईस साल की है। और इसी नवम्बर में इसकी शादी नवाब वज़ीर अली खाँ से होना करार पा चुका है।"
परेशानी की रेखाएँ डाक्टर के माथे पर खिंच गईं। उसने कहा, "लेकिन, लेकिन इसमें मैं आपकी क्या मदद कर सकता हूँ। आप मेरे मुरब्बी ज़रूर हैं, पर आप मुझसे कोई गैरकानूनी काम कराने की तो उम्मीद ही न रखेंगे।"
"कतई नहीं, मैं तो आपसे महज़ एक इन्सानी फर्ज़ अदा कराना चाहता हूँ। आपके वालिद की दोस्ती के नाम पर, या उस सलूक के बदले जिसका अभी आपने ज़िक्र किया है। इसके सिवा मैं आपको इसका मुनासिब मुआवज़ा भी दूंगा।"
“लेकिन आप चाहते क्या हैं? किस तरह मैं अपना फर्ज़ अदा कर सकता हूँ।"
"बताता हूँ। पहले आप मेरे कुछ सवालों का जवाब दीजिए।"
“पूछिए आप।”