पृष्ठ:धर्मपुत्र.djvu/११४

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दिलीप भी उनके साथ आग में घिर गया है, इस पर बानू का ध्यान ही नहीं गया था। अब उसकी यह बात सुनते ही उन्होंने घबराकर कहा, “दिलीप, तुम इस खिड़की की राह निकल जाओ, खुदा के लिए जल्दी करो!” मातृ-हृदय जैसे आकुल-व्याकुल होकर बानू की वाणी में व्याप गया। इसी समय पहली बार दिलीप ने बानू के मुँह की ओर देखा। पहली बार दोनों की आँखें चार हुईं, और किसी अज्ञात प्रेरणा ने उसे बानू के पैरों में झुका दिया। उसने कहा, “आपके हाथ सभी की जान है। आप न जाएँगी तो माँ और बाबूजी भी नहीं जाएँगे। मैं भी न जाऊँगा। आप ही हम सबको बचा लीजिए। आपके खुदा के नाम पर!” न जाने अन्तरात्मा की किस गहराई से दिलीप की आँखों में आँसू भर आए। बानू का मन बदल गया। उसने अरुणा से कहा, "चलो बहिन, दिलीप की बात ही रहे।" उन्होंने डाक्टर की ओर देखकर पुकारा, "भाईजान, जल्दी कीजिए।" “आप चलेंगी?" "चलूँगी भाईजान।” फुर्ती से डाक्टर खिड़की पर आ गए। रस्सी को जाँचा। फिर कहा, “मैं आपकी कमर में रस्सी बाँधता हूँ। आप धीरे-धीरे उतरिए।" “नहीं, पहले अरुणा बहिन।" अरुणा ने कहा, “यह नहीं हो सकता।" "आप समय बर्बाद कर रही हैं।” दिलीप ने अधीर होकर कहा, “बाबूजी, आप नीचे जाकर रस्सी साधिए। मैं एक-एक करके सबको उतारता हूँ।" डाक्टर चुपचाप रस्सी के सहारे नीचे उतर गए। नीचे पहुँच रस्सी तानकर उन्होंने कहा, “पहले बानू।” बानू ने कहा, “नहीं बुआ।” दिलीप ने गेंद की भाँति बूढ़ी दासी को उठाकर रस्से पर लटका दिया। बुढ़िया सही- सलामत रोती-चीखती नीचे पहुँच गई। "अब बहिन, तुम।” बानू ने अरुणा से कहा। किन्तु अरुणा ने कहा, “यह नहीं होगा- तुम जाओ पहले।" आग ने अब कमरे को छू लिया। दिलीप ने गुस्सा करके कहा, “आप सुनती नहीं हैं, क्या आपको भी उसी तरह उठाना होगा।" वह बानू की ओर बढ़ा। निरीह की भाँति बानू आगे बढ़ी। दिलीप ने उसे सावधानी से नीचे उतार दिया, इसके बाद अरुणा और रहमत मियाँ को भी। यह सब करते-कराते आग खिड़की तक आ पहुँची और ज्योंही दिलीप ने रस्सी पर हाथ डाला, रस्सी का वह सिरा जल उठा। रस्सी दिलीप के भारी बोझ को लिए नीचे आ रही। दिलीप सिर के बल गिरा, सिर फट गया। दिलीप बेहोश हो गया। बानू दौड़कर उसके ऊपर गिर गई। इस समय वहाँ बहुत आदमी एकत्रित हो गए थे। वास्तविक घटना का किसी को पता न था। आग बुझानेवाले, पुलिसवाले, मिलिटरी भी आ पहुँची थी। सारा महल धाँय-धाँय जल रहा था। लोग इस समय इस तरुणा दिलीप की तारीफ कर रहे थे। जिसने वीरतापूर्वक इतने आदमियों की जान बचाई थी।