जिसका मुँह उठता था भाग रहे थे।
सदर बाज़ार, हौज़काज़ी, फतेहपुरी, बल्लीमारान में कोई हिन्दू सही-सलामत नहीं आ-जा रहा था। खन्ना इस समय फतेहपुरी में बंडल बगल में दबाए घूम रहा था, अब उसमें अन्धकार होने तक रुकने का धैर्य न रहा। भीड़भाड़ की वजह से माल से लदी बहुत-सी ट्रकें वहाँ अड़ी खड़ी थीं। एक पर चढ़कर उसने खूब जोर से वह बंडल फतहपुरी मस्जिद के द्वार पर फेंक दिया। बण्डल का बम फटते ही बड़ा भारी धड़ाका हुआ और भगदड़ मच गई। मुसलमानों को पहली बार भय का सामना करना पड़ा। चारों ओर से शरणर्थियों और मुसलमानों ने अपनी-अपनी घात पाकर छुरे चलाने आरम्भ कर दिए।
शुक्रवार का दिन था और जामा मस्जिद में जुमे की नमाज़ अदा करने को कोई साठ हज़ार मुसलमान जमा हो गए थे। सम्भवत: यहाँ से डाइरेक्ट ऐक्शन होने वाला था। दिलीप ने जल्दी-जल्दी इसकी सूचना डिप्टी कमिश्नर को दी। डिप्टी कमिश्नर ने जितनी सेना और पुलिस वे ला सके, लाकर जामा मस्जिद को घेर लिया। नमाज़ अदा होने के बाद उन्होंने दस-दस आदमियों को बाहर आने का आदेश दिया। तनी हुई संगीनें देखकर मुसलमान घबरा गए। दस-दस की संख्या में वे आने लगे। तलाशी लेने पर उनके पास छुरे, बम, पिस्तौलें बरामद होने लगीं। देखते ही देखते छुरों और पिस्तौलों के ढेर हो गए। बहुत आदमी लारियों में भरकर जेल भेज दिए गए।
दुर्भाग्य से इस समय दिल्ली में सेना बहुत कम थी। सेना तथा पुलिस में अधिकांश मुसलमान भरे थे, जिन पर भरोसा नहीं किया जा सकता था। डिप्टी कमिश्नर ने मेरठ से सहायता माँगी थी, जिसकी क्षण-क्षण आशा की जा रही थी। जामा मस्जिद की तलाशी से निबटकर डिप्टी कमिश्नर ने एक टुकड़ी सेना के साथ दिल्ली के संदिग्ध मुहल्लों में गश्त लगाना आरम्भ किया। चितली कब्र के पास होकर वे एक गली में घुसे। इसी गली में एक मकान में विद्रोहियों का अड्डा था। उन्होंने समझा कि हमारा भेद पाकर पुलिस ने हम पर रेड की है। असंयत होकर उन्होंने गोली दागना शुरू कर दिया। सेना ने भी मोर्चा गांठा। दोनों ओर से गोलियों की बौछार चलने लगी। सेना के सिपाही और गोली-बारूद चुकने लगा। चिन्ता की सिकुड़न डिप्टी कमिश्नर के माथे पर पड़ी–इसी समय मेरठ से सहायता आ गई। आठ घण्टे की अग्निवर्षा के बाद सब लोग पकड़ लिए गए। बहुत से ट्रांसमीटर हाथ लगे। यहीं पर सब्ज़ीमण्डी के एक ज़मींदोज़ खतरनाक अड्डे का पता चला। परन्तु मिलिटरी की सहायता मिलने से प्रथम ही सब्जीमण्डी के मोर्चे से बम और गोलियाँ राह चलतों को भूनने लगीं। दिलीप ने सुना। कुल इक्कीस तरुणों को लेकर उस मोर्चे पर पहुंचा, जिसके सामने लाशों का ढेर लगा हुआ था। इन इक्कीस तरुणों के पास सिर्फ तीन बन्दूकें थीं। उनसे कोई काम नहीं निकल सकता था। मिलिटरी की सहायता भी समय पर नहीं पहुँच रही थी। यदि उस रात अड्डे को नियन्त्रित नहीं किया जाता तो शहर की खैर नहीं है। अब तक पचासों मकान जला डाले गए थे जिनमें जलती हुई आग की लपटें उस रात में बड़ी भयानक लग रही थीं। दिलीप को सूचना मिली, मुहल्ले के कुछ रईसों के पास बन्दूकें हैं, जिन्हें उन्होंने मखमली खोलों में सजाकर रख छोड़ा है। इस समय भी वे उनसे काम लेना नहीं चाहते थे। सब घरों में छिपे बैठे थे। दिलीप ने तय किया, पहले उन बन्दूकों को ही कब्जे में लेना चाहिए। तीन बन्दूकों को ताने हुए वे, एक-एक करके उन रईसों के बंगलों में