एस० डी० पी० प्रेस जलंधर सिटी २८-४-०५ श्रीमन्तो विबुधवराःप्रणम्यन्ते । कृपापत्र मिला, कृतार्थ किया। हाली कृत कुछ कवितायें आज की डाक द्वारा भेजता हूं। इनमें से एक तो नागराक्षरों में ही है, उसकी भाषा भी हिन्दी है, जैसे आप उचित समझें (चाहे सम्पूर्ण या अंशतः) 'सरस्वती' में प्रकाशित कर दें। 'मजमूए नजमें हाली' में १४ कवितायें हैं जो बड़ी सरस और शिक्षाप्रद हैं। उनमें से 'वर्षाऋतु' तो 'सरस्वती' में अविकल प्रकाशित होने योग्य है, उसकी भाषा सरल है । और भी कई ऐसी है जो क्लिष्ट शब्दों पर टिप्पणी देकर छापी जा सकती हैं। ___'शिकवे हिन्द' और 'मसनवी हकूके औलाद' की कविता बड़ी उत्कृष्ट है। आप एक बार इस सब संग्रह को पढ़ जाइए, फिर उनमें से जो 'सरस्वती' के योग्य जचें, और उन्हें नागराक्षरों में लिखने और टिप्पणी चढ़ाने की आवश्यकता हो तो मुझे आज्ञा दें (यदि आपको अवकाश न हो)। 'दीवाने हाली' भी मेरे पास है, उसकी भूमिका बड़े काम की चीज है। भूमिका क्या उर्दू कविता का 'साहित्य दर्पण' सम- झिए। उसमें से एक निबन्ध का अनुवाद करके मैं 'सरस्वती' के लिए भेजूंगा। ___'विधवा की प्रार्थना' का संस्कृत पद्यमय अनुवाद आपकी सेवा में भेजता हूँ। यह एक मेरे मित्र ने किया है उनकी और मेरी भी यही इच्छा है कि यदि आपकी सम्मति में यह छपाने योग्य जंचे तो छापा जाय अन्यथा नहीं। कृपया इसे भी देख जाइए। 'हिन्दी शिक्षावली' की समालोचना मैंने ला० मुंशीराम जी (जो इधर की आर्यसमाजों के नेता और योग्य पुरुष हैं) को दिखलाई। वे उसे पढ़कर बड़े ही प्रसन्न हुए, और कहने लगे कि “ऐसे विद्वान् और योग्य पुरुष हमें नहीं मिलते।" ___ उनकी प्रेरणा से कुछ हिन्दी की पुस्तकें आपकी सेवा में समोलचनार्थ भेजी जाती है। उनकी इच्छा है कि 'हिन्दी शिक्षावली' की तरह इनकी समालोचना
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श्री पं० पद्मसिंह शर्मा जी के पत्र
श्री आचार्य महाबीर प्रसाद द्विवेदी जी के नाम