'७४ द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र "निर्माण के रूप में। ____गत वर्ष मेरे कुटुम्ब की अंतिम स्त्री मरी। तब मैंने अन्त्येष्टि-कर्म करने के 'सिवा १०००) रु० दीन दुखियों को बांट दिया। कानपुर का पुस्तक संग्रह ना० प्र० सभा को पहले ही दे चुका था। एक गाड़ी पुस्तकें छै महीने हुए यहां से उसे और 'भेजीं। दो गाड़ियां अभी और भेजना है। १००० रु. इस सभा को अभी अभी जो 'दिए हैं सो आप जानते ही हैं। अब भी लोकोक्तिकार के अनुमित लाख डेढ़ लाख या करोड़ दो करोड़. जो बच रहे हैं, वे प्रायः सब के सब हिन्दू विश्वविद्यालय को देनेवाला हूँ। पत्र-व्यवहार कर रहा हूँ, जनवरी-फरवरी में शायद आप और खत्री जी भी सुन लें कि कितने लाख हैं। ___ यह सब मैंने लिख तो दिया, पर डर है कि मेरे मरने पर कहीं आप ये बातें छपवाने न दौड़ पड़ें। मैं इसकी जरूरत नहीं समझता। लाख दो लाख का स्वप्न देखनेवालों का स्वप्न में भंग नहीं करना चाहता। आपका महावीरप्रसाद द्विवेदी
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