पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/८६

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श्री पं० बनारसीदास चतुर्वेदी जी के नाम (स्व० द्विवेदी जी का एक महत्वपूर्ण पत्र) [स्व० पूज्य द्विवेदी जी के निम्नलिखित पत्र का कुछ इतिहास है । एक दिन लोकोक्तिकोष के रचयिता श्री दामोदरदास जी खत्री 'विशाल भारत' कार्यालय में पधारे और बात-चीत के सिलसिले में उन्होंने कहा कि द्विवेदी जी के पास तो कई लाख रुपए हैं। मुझे उस समय एक धूर्तता सूझी यानी मैंने अपनी एक चिट्ठी में इस बात का जिक्र कर दिया। साथ ही एक बेवकफी और भी की। द्विवेदी जी से आत्मचरित ५) की पृष्ठ पर लिखने का अनुरोध कर दिया। संपादन-कार्य करते हुए मुझे कुल जमा साढे नौ महीने हुए थे और अपनी अनुभवहीनता ही के कारण मैंने यह गलती की थी। ___इसके सिवाय दो भूलें मुझसे और हो गई। चिट्ठी बहुत लम्बी लिखी और प्रवासी भारतीयों के लिए जो कार्य मैंने किया था उस पर लिखी हुई सम्मतियां भी चिट्ठी के साथ भेज दीं। पूज्य द्विवेदी जी के स्वास्थ्य के विषय में मुझे पता नहीं था। अब बारह वर्ष बाद मुझे अपनी मूर्खताओं पर हँसी आती है और पश्चा- त्ताप भी होता है। पर संतोष इतना ही है कि इस प्रकार पूज्य द्विवेदी जी का एक महत्वपूर्ण पत्र मिल गया, जो हम लोगों के लिए विशेषतः हिंदी लेखकों के लिए एक संदेश रखता है। इस पत्र को पढ़कर यदि पाठकों को कुछ भी लाभ हुआ (उस महान् साहित्यिक तपस्वी की अनुपम साधना से कुछ भी शिक्षा मिली) तो उसके पुण्य से मेरे अपराध का कुछ तो प्रायश्चित्त हो ही जायगा। टीकमगढ़ १-१०-४० बनारसीदास चतुर्वेदी] (१) दौलतपुर (रायबरेली) २२-१०-१९२८ प्रियवर चतुर्वेदी जी नमोनमः। १९ अक्तूबर की चिट्ठी मिली। उसकी लम्बाई देखकर ही डर गया। यह सोचकर कि मुझे उससे भी लम्बा जवाब लिखना पड़ेगा, मैं घबरा-सा गया। खैर, जो भोग भाग्य में बदा है, उसे भोगना ही पड़ेगा।