द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र अर्थात-इस राजा की अपकीतियों का वर्णन कच्छपी के दूध के समुद्र के किनारे किया जाता है। अच्छा, करता कौन है ? करते हैं बन्ध्याओं के पेट से पैदा हए गूंगे मनुष्यों के समूह। अच्छा, किस स्वर में? आठवें स्वर में। अब चुंकि यह सब असम्भव है, अतएव जाना गया कि इस राजा में अकीतियों का लेश भी नहीं। ___ अधम कविता वह है जिसमें यदि और कुछ न हो तो वह कान को तो अच्छी लगे। उदाहरण- पिय हिय की सिय जाननि हारी। मणि मुंदरी मन मुदित उतारी।। (२) मृषार्पयन्तीमपथे पदं त्वां मरुल्लतापल्लवपाणिकम्पैः। आलीव पश्य प्रतिषेधतीयं कपोतहुंकारगिरा बनालिः। कविता वही विशेष आदर पाती है जिसमें और गुणों के सिवा प्रसाद गुण भी हो। अर्थात् वह अधिकांश लोगों की समझ में झट आ जाय। उदाहरणों की जरूरत नहीं उदाहरण दरकार ही हो तो महाकवि मिश्र का वह सवैया देख लिया जाय जिसकी अंतिम लाइन है- ये उनके मुखपंकजभंग तो वे इनके मुख चन्द्र चकोर ये। यह सवैया अगस्त ३३ के सुकवि पृष्ठ ९ पर मिलेगा। रम्यरास के कवि को चाहिए था कि वे कृपा करके मुझे लिखते कि उन्होंने अपनी पुस्तक की कापी मुझे किसलिये भेजी है। खैर, मुझ तुच्छ से यदि वे उसका संशोधन कराना चाहते हों तो यह काम मेरी शक्ति के बाहर का है। मैं लिखने-पढ़ने के सम्बन्ध में जीवन्मृत सा हो रहा हूँ, दिमाग काम नहीं देता, अतएव दया करके वे मुझे क्षमा करें। मेरी शरीर सम्पत्ति की हीन दशा से पं० कालीचरण अच्छी तरह परिचित हो गए हैं। पुस्तक में कई अंश मैंने पढ़कर देखे। मालूम नहीं यह किसी अन्य रचना का अनुवाद है या कविवर की ही रचना है। इसमें यत्र तत्र बोलचाल की भाषा? ब्रज- भाषा का मिश्रण हो गया है। इसके सिवाय इसमें कहीं-कहीं दुर्बोधता भी है। उचित समझा जाय तो इन त्रुटियों का दूरीकरण कर दिया जाय। साथ ही अच्छी कविता के जो निर्देश मैंने ऊपर किये हैं. उनके अनुसरण की भी चेष्टा की जाय।
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