पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/६३

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श्री मंत्री ना० प्र० सभा और श्री डॉ० श्यामसुन्दरदास जी के नाम जुही-कलां, कानपुर श्रीयुत मंत्री जी, ना०प्र० सभा, काशी १९-१०-२३ महाशय मेरी पुस्तकों का जो संग्रह यहाँ कानपुर में है उसे आपने देखा ही है। वह पड़ा-पड़ा यहाँ बरबाद हो रहा है। मैं उसे ना० प्र० सभा, काशी को दे डालना चाहता हूँ। उसकी इच्छा हो तो ले ले, शर्ते कोई नहीं। जो शर्ते वह करे वही मंजूर । पुस्तकें यों ही सरपट है। मगर जो कुछ हैं हाजिर हैं। दौलतपुर में भी संग्रह है। वह इतना ही या इससे कुछ अधिक ही होगा। पुराणादि वहीं हैं। उसे भी देने का विचार कुछ समय बाद करूँगा। . मैं कानपुर में शायद ही महीना भर रहूँ। पुस्तकें ग्रहण करना मंजूर हो तो किसी को भेज दीजिए। वह फिहरिस्त बना डाले। एक कापी मुझे दे दे , एक ले जाय। रहे शहर में, काम करने जुही आवे। क्योंकि यहां रहने की जगह नहीं। मेरे खपरैल में सिर्फ २ कमरे हैं, एक पुस्तकों के लिए एक भीतर। पुस्तकें चीड़ के बक्सों में बंद करके या बंडल बनाकर बोरियों में भरकर जिस तरह सुभीता हो ले जाय। मेरे यहाँ न रहने के कारण बहुत पुस्तकें बरबाद गईं। कुछ उठ गई, कुछ की जिल्दें चूहों ने कुतर डालीं। उससे जल्द उठाना चाहिए। जिस लड़के को मैंने अपनी छोटी भानजी दी है वह म्यूर कालेज के फोर्थ इयर में है। संस्कृत भी उसके कोर्स में है। दस-बीस संस्कृत की पुस्तकें उसके लिए रख लूंगा। . ___ मेरे समय की सरस्वती की १७ वर्ष की हस्तलिखित कापियां मेरे पास हैं। किसी समय भविष्यत् में वे शायद मूल्यवान् समझी जायं । उनको देखने से पता लगेगा कि आज कल के हिंदी के अनेक धुरंधर लेखक किस तरह राह पर लाये गये थे। वे भी दे डालूंगा। सभा चाहे तो जिल्द बंधाकर रख छोड़े। कुछ पत्रव्यवहार भी रखने को दे ,गा। अपनी कई पुस्तकों की भी हस्तलिखित कापियां ,गा।