द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र ( १४) जुही, कानपुर २३-११-१६ नमस्ते पंचदशी मिली। पसंद आई। समालोचना लिख ली। गल्प शब्द बंगला में ही अधिक व्यवहृत होता है। हिंदी में क्यों लिया जाय ? आख्यायिका या कहानी से क्या काम नहीं चल सकता? भवदीय म०प्र० द्विवेदी दौलतपुर, रायबरेली ५-१-१७ प्रणाम पत्र मिला। चकबस्त जी की कविता हिंदी वालों के लिए क्लिष्ट है। पर छाप दूंगा। शायद आपकी प्रार्थना पर वे कभी एक आध कविता सरल भी दे दें। चादर एक आध दिन में भेजूंगा। पारसल बनाना है। 'नेशनल वीक' पर आप लिख सकते हैं। पर जनवरी की सरस्वती तो कंपोज हो चुकी। फरवरी के लिए बातें अगर पुरानी न हो जायं तो भेजिए। प्रतिभा के लिए लेख लिखने की चेष्टा करूंगा। अभी ७,८ रोज फुरसत नहीं। बाद को। भवदीय म. प्र. द्विवेदी (१६) दौलतपुर रायबरेली १५-३-१८ प्रणाम खेद है आप बीमार पड़ गए। संभाल कर रहा कीजिए। मुझे एक नया रोग सता रहा है। कभी कभी गश आ जाता है। उस दिन
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