पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/५०

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द्विवेदी जी के पत्र 'जनसीदन' जी के नाम (४७) कमर्शल प्रेस, कानपुर ४-११-२८ सादर प्रणाम बहुत मुद्दत के बाद आपका पत्र मिला। पुराना स्नेह नया हो उठा। परमानन्द हुआ। बड़ी कृपा की जो मेरा स्मरण किया। ____आपके कुटुम्ब का हाल मालूम हुआ। ईश्वर करे आप और आपके पुत्रकलत्र प्रसन्न रहें। आपही की तरह मैं भी मकान पर कृषक हो गया हूँ। पर अवर्षण के कारण इस वर्ष यहां दुभिक्ष-सा है। शरीर मेरा अत्यन्त जीर्ण है। कुछ समय से फिर उन्निद्र रोग हो गया है। निर्बलता की तो सीमा ही नहीं। यहां चिकित्सार्थ आया हूँ। एक मास शायद रहना पड़े। स्नेहभाजन म०प्र० द्विवेदी (४८) दौलतपुर (रायबरेली) ५-३-३१ श्रीमान् पंडित जी को प्रणाम १ मार्च का पो० का० मिला। आप कासश्वास से तंग रहे हैं, यह सुनकर दुःख हुआ। भाई, यह बार्धक्य व्याधियों का घर है। मेरी उन्निद्रता फिर उभड़ी है। बहुत कष्ट दे रही है। ____ मैं अब लिखने-पढ़ने योग्य नहीं रहा। बरसों से कुछ नहीं लिखा। बहुत तंग किए जाने पर ही कभी दस-पांच सतर खींचखांच देता हूँ। मौका मिलने पर आपकी आज्ञा का जरूर पालन करूंगा। खेद है, आपने कभी पहले उसकी याद नहीं दिलाई। आपका म. प्र. द्विवेदी