पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/२९

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द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र (१४) जुही, कानपुर २०-९-०४ श्रीमान कविशिरोमणि पंडित जनार्दन झा को बहुबिध प्रणाम। बिनय सुनिए। आपका अद्भुत पत्र आया। पढ़कर चित्त पर ऐसा आंतक जमा कि हम उसका वर्णन नहीं कर सकते। पुराणों में लिखा है कि देवता जब किसी पर प्रसन्न होते थे तब 'बरंब्रूहि' कहते थे। ठीक वैसे ही आपने हमसे 'बरंब्रूहि' का प्रश्न किया है। इससे अधिक श्रीमान् राजा कमलानन्द सिंह की उदारता, गुण-ग्राहकता और सामर्थ्य का और क्या उदाहरण हो सकता है। आपके उदाहरण से कर्ण, बलि और दधीचि आदि की कथा सब सच जान पड़ती है। राजा साहब के लिए क्या कहना यशस्कर होगा, यह बतलाने में हम असमर्थ हैं। श्रीमान् की प्रतिष्ठा, कीर्ति और ख्याति अनन्य, अपरिमेय और दिग्व्यापिनी है। उनकी रचना हमारी समझ में है ही नहीं, उसकी किस तरह वृद्धि होगी, या कौन कार्य करने से वृद्धि होगी, यह बतलाना हमारे सामर्थ्य के सर्वदा बाहर है। ___ 'सरस्वती' पर यदि कोई प्रसन्न होगा तो दो बातों से होगा। उसकी छपाई, सफाई, कागज इत्यादि पर या उसके लेखों पर। पहली बात का श्रेय छापनेवालों का है, जो 'सरस्वती' के मालिकों के आदमी हैं। दूसरी बात का भार हम पर है। जब हमने 'सरस्वती' का अधिकार अपने हाथ में लिया था तब उसकी दशा हीन- बहुत ही हीन-थी। पर अब वह बात नहीं। अब उसका प्रचार तब से करीब करीव दूना हो गया है। इसलिए उसकी अर्थकृच्छता जाती रही है। उसके मालिक आत्मा- वलम्बी हैं और ऐसे निर्धन भी नहीं हैं। जब 'सरस्वती' अच्छी हालत में न थी तब भी उन्होंने दूसरों की सहायता धन्यवाद-पूर्वक अस्वीकार कर दी। हां, १००-५० कापी 'सरस्वती' की यदि कोई लेकर अपनी गुणज्ञता दिखलाता तो कोई बात नथी। इस बात की सूचना हमने आपको भी दे दी थी। परन्तु शायद आप भूल गए होंगे। रही हमारी बात। सो इस विषय में भी हमारी प्रार्थना सुनिए। महाराज गायकवाड़, ठाकुर साहब गोंडल, महाराज योधपुर ने संपादकों और लेखकों को हजारों रुपए से मदद की है। जसवन्तजसोभुषण के लिए तो सुनते हैं, लाखों मिले हैं। यह उस तरफ की बात हुई। आपकी तरफ हिंदी लेखकों को उत्साहित करने में आपके श्रीमान् ही अनन्वयालंकार के उदाहरण-स्वरूप हैं। यह हिंदी के लिए गौरव की बात है और श्रीमान् की उदारता की और गुणज्ञता की परिचायक है। व्यास जी के लिए आपने जो कुछ किया वह शायद ही किसी ने किया होगा। श्रीमान् संपत्ति का सद्व्यय करना जानते हैं। किसी ने ठीक कहा है-