पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/२२७

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बालमुकुन्द गुप्त जी के पत्र पं० श्रीधर पाठक जी के नाम २१३ विज्ञापन अवश्य छपवाइयेगा। आपने इस पुस्तक के छपवाने में लागत बहुत लग वाई। एकान्तवासी योगी की भांति छपवाते तो १५० रुपये की हानि न होती। मैं और उद्योग करूंगा। सेवक बालमुकुन्द पं० श्रीधर पाठक जो को (१४) कलकत्ता ६-९-०२ पूज्यवर प्रणाम ३०१ से ३३० पंक्तियां छापी गईं। कदाचित कोई भूल रही होगी। क्योंकि उस दिन मैं अपनी माता की बीमारी की खबर पाकर बहुत घबराया हुआ था। अब माता को आराम होने की खबर सुनी है। ____ अब आपका अनुवाद सरल नहीं, बड़ा कठिन होता जाता है । पंक्ति प्रति पंक्ति अनुवाद करना ही इसका कारण है। जैसा एकान्तवासी योगी सरल है, वैसा यह श्रान्तपथिक नहीं है। अर्थ को इतना कड़ा करना मैं पसन्द नहीं करता। लोग सम- झेंगे नहीं तो अनुवाद से क्या फायदा। शायद आप मिश्र भाइयों की समालोचना से इस पंक्ति प्रति पंक्ति के झगड़े में पड़े हैं। कृपा करके उत्तर दें। कोई नई कविता भेजें। दास बालमुकुन्द गुप्त श्रीधर पाठक जी को