श्री पं० पद्मसिंह शर्मा जी के पत्र पं० श्रीधर पाठक जी के नाम नायकनगला- चांदपुर (बिजनौर) वैशाख कृ० ८, १९८० श्रीमत्सु कवि-मार्मिक-मूर्धन्येषु “परगुणपरमाणून् पर्वतीकृत्यनित्यं निज हृदि विकसन्तः सन्तिसन्तः कियन्तः" इत्यभियुक्तोक्ति स्वोदाहरणेन कालावपि चरितार्थमत्सु परमोदारचरितेषु श्रद्धाभाजनेषु श्री प्रदेषु' श्री श्रीधरचरणेषु, साञ्जलिबन्ध भूयोभूयः प्रणम्य निवेदयति। ___ आपकी उदारता और कृपा का नितान्त अनुगृहीत हूँ। श्रीमान् ने मेरी तुच्छ रचना को इतना आदर दिया, इसका कारण केवल आपकी महानुभावता है, धन्यवाद प्रदान और कृतज्ञता प्रकाशन करके मैं इस उपकार से 'उऋण' नहीं हो सकूँगा। श्रीयुत पं० जगन्नाथप्रसाद जी चतुर्वेदी से मुझे आपकी इस कृपा की “तफसील" मालूम हुई थी, मेरा विचार था कि कानपुर से मैं प्रयाग आपके दर्शनार्थ आता, श्री वियोगीहरि जी ने आपका आदेश भी कहा था, पर दुर्भाग्यवश मैं उधर न आ सका, इसका मुझे पश्चात्ताप है, इसका प्रायश्चित कभी करूंगा। ___आपका २२/३ का कृपाकार्ड देहली के पते पर भेजा हुआ, मुझे २८/३ को सम्मेलन जाते वक्त यहां मिला था। उससे पहला १७-३ का पत्र जिसका इस कार्ड में उल्लेख है, मुझे नहीं पहुंचा। मैं देहली से २२-३ को यहां चला आया था, यह दिन बड़ी विपत्ति में कटे, छोटे भाई की स्त्री बीमार थी, उसका देहान्त हो गया, इस कारण मैं न आपको पुस्तक भेज सका, न पत्र लिख सका। भूमिका और भाष्य का संयुक्त संस्करण भेज रहा हूँ, स्वीकार कीजिये। कृपा दृष्टि रखिये। कृपापात्र पद्मसिंह शर्मा
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