पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/१८३

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पं० पद्मसिंह शर्मा जी के पत्र द्विवेदी जी के नाम

"हिंदी कोविदकंठमाला' पर हमें जरूर कुछ लिखना है। और जल्द लिखना है, १७ खर्च कर डालें या आप अपनी कापी भेज देंगे? पूना से उस किताब का पता जरूर लगा बिहारी सतसई के ग्रियर्सन वाले संस्करण का पता बतलाइए। आगरे से कोई पत्र माफी आदि के बारे में आया? यहां वर्षा ऋतु प्रारंभ हो गई है। वर्षा के कारण से स्वामी जी का कुंआं ढह ढवा कर बराबर हो गया। म० वि० का कूप भी शायद ही तैयार हो सके। कृपापात्र पद्मसिंह भारतोदय की १म संख्या यदि कहीं और भिजवानी हो तो लिख भेजिए। प० सिह नीमच के सेठ जी ने फिर तकाजा शुरू किया है। पद्मसिंह (७१) ओम् महाविद्यालय ज्वालापुर २०-६-०९. श्रीयुत मान्यवर पण्डित जी महाराज प्रणाम १३-६-०९ का कृपापत्र यथासमय पहुंच गया था। परन्तु मैं मेरठ गया हुआ था। अतः उत्तर में विलंब हुआ। बेशक भारतोदय के १म अंक की समालोचना 'सरस्वती' में नहीं निकलनी चाहिए, हर्गिज नहीं निकलनी चाहिए, कोई जल्दी नहीं दो चार महीने पीछे देखा जायगा । मैंने तो यहां दफ्तर वालों से मना कर दिया था कि इस अंक की समालोचना के लिए 'सरस्वती' से तकाजा न किया जाय। पर मालूम होता है यहां से आपको लिखा गया है, यह राव जी की कृपा दीखती है, यदि कोई ऐसा पत्र यहां से गया हो तो कृपया लिखिए। १. स्थान न रहने से तारीख के ऊपर लिखा हुआ है। २. लाल पेंसिल से पीठ पर ।