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द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र

रिपोर्ट की थी कि 'परोपकारी' बंद होना चाहिए क्योंकि इससे कुछ आमदनी नहीं, इत्यादि। पर महाराज साहब आज्ञा दे गये हैं कि पत्र चलना चाहिए। मैंने कहीं, अन्यत्र अभी प्रबंध तो कुछ नहीं किया परन्तु यहां से पृथक् होने का विचार कर लिया है, कुछ न कुछ प्रबंधान्तर हो ही जायगा। इन्डियन प्रेस में कोई जगह हो तो खयाल रखिए, अभी ऐसी कुछ जल्दी नहीं है।

वा० मैथिलीशरण जी गुप्त का पत्र आया है, वह अनुरोध करते हैं कि हम सतसई पर एक टीका अवश्य लिखें, हमारा इरादा भी है, क्या इण्डियन प्रेस उसे अपनी ओर से प्रकाशित कर देगा।

गोपीचन्द की कथा का पर्चा शंकर जी को भेज दूंगा। गोपीचंद के विषय में प्रसिद्धि है कि उसकी माता ने ही उसे फकीर बनने की प्रेरणा की थी।

खमीरागावजबां कल भिजवा दिया है, उसका सेवन कीजिए।

कुशल पत्र भेजते रहिए, आज्ञा करते रहिए।

कृपाकांक्षी
 
पद्मसिंह
 
(६५)
ओम्
अजमेर
 
१३-१२-०८
 

श्रीयुत मान्यवर पंडित जी महाराज

प्रणाम

३०-११ का कृपापत्र यथासमय मिल गया था, उत्तर में कई कारणो से विलंब हुआ।

मुझे विश्वस्त जरिये से मालूम हुआ है कि बाबूराम और कपूरचंद माफी नहीं मागेंगे, उन्होंने इस बारे में प्रतिनिधि के प्रधान की आज्ञा भी नहीं मानी। लिख दिया कि हम सब मुसीबत झेलने को तैयार है, सभा से कुछ सहायता नहीं चाहते।

आपने नालिश कर दी होगी? जैसाकि आप लिखते हैं। कृपया इस मामले की सूचना दीजिए।

मैं ‘आर्यमित्र’ की संपादकता स्वीकार नहीं कर सकता। कई कारण हैं, प्रधान कारण यह है कि आर्य सामाजिक नौकरियों में स्वतंत्र नहीं रहती, गुलामी की दशा से बदतर है। श्रेणी:Hindi