पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/१७४

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द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र आज हमें एक और महापुरुष के दर्शन हुए। आपका नाम है दीनदयालु 'चौबे, किसी समय आप वेंकटेश्वर के संपादक थे। आजकल रावलपिंडी में किसी दफ्तर में क्लर्क हैं। बातों बातों में आप फरमाने लगे कि नाथूराम शंकर की कविता कुछ नहीं होती। 'सरस्वती' के संपादक कुछ नहीं जानते। हम हिंदी के बहुत पुराने लेखक हैं इत्यादि। मैंने कारण पूछा तो बोले कि शंकर जी ने एक कविता में शान्ति को तोप का रूपक दिया है, यह अलंकार ठीक नहीं। मैंने कहा कि 'शान्तिखङ्गः करे यस्य किं क०' में जब शान्ति खङ्ग बन सकी है, तो तोप होने में क्या हर्ज है। बोले, हम संस्कृत तो जानते नहीं। बहुत खूब! फिर आपके विषय में विवाद चला। आप बोले, "अजी वह क्या हैं, हम उनके साथ बहुत रहे हैं, "मैंने कहा," इससे क्या हुआ। एडवर्ड के साथ भी तो बहुत से आदमी रहते हैं। इस पर बड़े झेंपे, मुंह बनाकर रह गये। पं० गिरिधर शर्मा जी का कोई पत्र आपके पास पहुंचा कि नहीं। भवदीय पद्मसिंह ओम् अजमेर १७-१०-०८ मान्यवर पंडित जी __नमस्ते पत्र और कार्ड यथासमय मिले, मैं ५-६ दिन से ज्वर पीड़ित हूं। इस कारण उत्तर में विलंब हुआ। जो आ० मि० आपने मांगा है भेजता हूं और हाल का पर्चा भी भेजता हूं, उसमें बहुत कुछ है, देखिए। मालूम होता है, मुकद्दमा चलेगा। आपस में ही निबट जाय तो अच्छा है। मुझे यहां ४८) मिलते हैं, ४०) परोपकारी से और ८)अ० रक्षक से। इंडियन प्रेस में क्या काम करना होगा? कितने की जगह है ? खमीरा गावज बा का विधि पत्र पहुंच गया होगा, कीमत भी उसमें लिखी है। पं. रामचंद्र जी का लेख पहुंचेगा। अपना कुशल लिखिए। भवदीय पद्मसिंह श०