पं० पद्मसिंह शर्मा जी के पत्र द्विवेदी जी के नाम १४९ हीरासिंह के चित्र और चरित्र के लिए मैंने अमृतसर एक विद्यार्थी को लिखा था, उसका उत्तर आया था कि हीरासिंह ने अपना फोटो खिचवा कर शीघ्र देने का वादा किया है। मैंने आज एक और लम्बा पत्र उस विद्यार्थी को लिखा है कि यथाशक्ति शीघ्र भेजो। दूसरा पत्र मैं शायद आपको कांगड़ी से या अजमेर से लिख सकूँगा। वहां जाने का कारण भी उसी पत्र में लिखूगा। कृपापात्र पद्मसिंह (५२) ओम् अजमेर २१-५-०८ श्रीमन्मान्य महोदय ! प्रणमामि ९-५ का कृपापत्र यथासमय मिल गया था, इस बीच में फुरसत नहीं रही, इसलिए पत्र न लिख सका क्षमा कीजिए। 'अनाथरक्षक' सम्पादक इस्तीफा देकर चले गये, उसका सम्पादन भार भी कुछ दिनों के लिए, अनाथालय कमेटी ने मुझ पर डाल दिया, इस कारण काम और बढ़ गया। ___आर्यमित्र का वह पर्चा तलाश करने पर भी हाथ नहीं आया, उसमें कुछ उत्तर- णीय बात न थी, व्यर्थ की बकवास थी। अब की 'सरस्वती' में सोमलता' पर अच्छा लेख है, उसमें 'वितस्ता' का अर्थ व्यास जो किया गया है, यह ठीक नहीं, वितस्ता झेलम को कहते हैं, व्यास का नाम विपाट् या विपाशा है, सोम की कुछ बातों पर और 'पंचपुकार' पर शायद कुछ महाशय ची ची करें। ___बा० हरिश्चन्द्र की वह कविता पसन्द न होने पर भी निकाल ही दीजिए। विद्या- थियों की हिम्मत बढ़ानी चाहिए, यह शुभ लक्षण है कि गुरुकुल के ब्रह्मचारियों में भी राष्ट्रीयता के कुछ चिह्न दीखने लगे। उस कविता के साथ वह अपना नाम देना नहीं चाहते और 'बाल ब्रह्मचारी' यह भी उन्हें पसन्द नहीं, इसलिए किसी अन्य कल्पित नाम से उसे निकाल दीजिए।
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