द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र 'सुन्तवादिनी' की संख्या पहुंची, इसके लिए अनेक धन्यवाद। अच्छी पत्रिका है, इसकी कापियां रद्दी में न बेचकर यदि महीने भर की इकट्ठी हमें भेज दिया कीजिए तो बड़ी कृपा हो। एप्रिल के मखजन में "दिल की सवानहउमरी" के लेखक ने “चिड़े चिड़िया की कहानी" लिखी है, बड़ी मजेदार है, देखिए, तो भेज दूं ? 'बिहारी सतसई का संस्कृत अनुवाद "शृंगारसप्तशती" हमने मंगाया है, अच्छा है, पर दोहों का अनुवाद दोहा छन्द में ही करने की सख्त कैद से काम बिगड़ गया। प्रायः स्थलों पर अनवाद मूल के विरुद्ध और अशुद्ध है, उसके साथ जो मूल पाठ दिया गया है, उसमें और भी गड़बड़ है, प्रायः टीकाकारों और छापने वालों ने 'सत- सई ऐसी अपूर्व पुस्तक की बड़ी दुर्दशा की है, पाठयभेद का तो कुछ ठीक ही नहीं, बा० हरिश्चन्द्र की सम्पादित 'सतसई तो देख ली, पं० अम्बिकादत्त व्यास का "बिहारी बिहार" देखने की और इच्छा है, शायद उसमें और नहीं तो मूल पाठ ही शुद्ध पढ़ने को मिल जाय। यादि आपको उसका पता मालूम हो तो लिखिए, कहां से और कितने में मिलता है, बनारस तो मिला नहीं। मार्च के 'आर्य मुसाफिर' में 'सरस्वती' के दो लेखों (आसाम की नागाजाति और उत्तरीय ध्रुव की यात्रा) का अनुवाद छपा है। पहले लेख के शुरू में यह रुबाई लिखी है- "मशहर हुई जहां में कौमे नागा, आखिर नंगों का भी नसीबा जागा। उरयानी का भी है किस कदर सादा लिबास, जिसका न गिरेबां है न पीछा आगा।" कृपापात्र पद्मसिंह ओम् नायकनगला १४-५-०७ श्रीयुत मान्यमहोदयेषु प्रणामाः २-५ का कृपापत्र कुछ देर से मिला, उत्तर में और भी देर हो गई। बा० गंगाप्रसाद जी से लिखा पढ़ी का जो कुछ नतीजा निकले, पीछे से लिखिए। वे
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