पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/१४७

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पं० पद्मसिंह शर्मा जी के पत्र द्विवेदी जी के नाम १३३ कृपा करके इसे पूरा लिखिए। पार साल एक श्लोक श्री पं० सत्यव्रत सामश्रमी जी ने सुनाया था, वह कहते थे कि यह श्लोक हमें पण्डित रमा बाई ने लिखा था और उन्हीं का बनाया हुआ है, यथा- "तात! बिल्हण! किं ब्रूमः कर्मणोगतिरीदृशी। दुष घातोरिवास्माकं गुणो दोषाय कल्पते।" सामश्रमी जी ने बिल्हण शब्द का कुछ विलक्षण अर्थ भी बतलाया था पर उससे हमें सन्तोष न हुआ, कदाचित् यह श्लोक उसी राजकन्या ने बिल्हण को लिखा हो, और रमाबाई ने अपने ऊपर घटता हुआ समझकर लिखा हो। (सामश्रमी जी ने रमाबाई विषयक एक ऐसी ही कथा सुनाई थी जो उस राजकन्या की कथा से मिलती हुई थी)-आपने चर्चा में लिखा है कि बिल्हण भोज की राजधानी धारा को नहीं गया, पर वि० चे० स० १० श्लो० ९६ से यह विदित होता है कि विल्हण धारा में गया, पर जब भोज मर चुके थे। मालूम होता है चर्चा छपाते समय उसकी नजरसानी नहीं की जैसी कापी पहले से लिखी रखी थी वही प्रेस में भेज दी। इस विषय में विशेष फिर लिखूगा, बिल्हण की कर्ण सुन्दर-नाटिका भी तो मुद्दत हुई छप गई है ! कल हम गु० कु. कांगड़ी के उत्सव पर जाते हैं। २-३ एप्रिल तक लौटेंगे। पद्मसिंह (४१) नायकनगला ६-४-०७ श्रीयुत माननीय महोदयेषु प्रणतयः हम कल कांगड़ी से वापस आ गए, आपके तीन पत्र एक साथ मिले, परमानन्द हुआ, बिल्हण वाले श्लोक के लिए धन्यवाद। 'सरस्वती' हमने गुरुकुल में ही एक ब्रह्मचारी से लेकर पढ़ी, वहां के कई ब्रह्मचारी इसे मंगाते हैं, उनमें प्रायः आपके भक्त हैं, उनकी बड़ी उत्कट इच्छा है कि आप एक बार वहां पधारें। वे लोग पूछते थे कि 'शिक्षा' कबतक निकलेगी? 'स्वाधीनता' उन्हें पसन्द आई है, आपके लेखन चातुर्य और परिश्रम की वे प्रशंसा करते थे। उत्सव अबके बड़े समारोह से हुआ, ४००००से कम भीड़ भाड़ न थी। गोखले महोदय का नाम सुनकर बहुत लोग