पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/१४४

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पं० पसिंह शर्मा जी के पत्र द्विवेदी जी के नाम १२९ 'ज्योतिष वेदांग' पर आपकी निष्पक्ष पर्यालोचना पढ़कर चित्त बहुत ही प्रसन्न हुआ, सुधाकर जी भी क्या याद करेंगे? 'आधुनिक अर्जुन' की तरह राना सुल्तान- सिंह का चित्र भी कभी सरस्वती में निकालिए। ___ 'सम्पत्तिशास्त्र' पर अच्छा लेख है, इस विषय पर उर्दू के प्रसिद्ध कवि और लेखक प्रोफेसर मुहम्मद इकबाल एम० ए० ने एक किताब उर्दू में 'इलमुल इक्तसाद' नामक खूब लिखा है। 'इस्ट एन्ड वेस्ट' के दिसम्बर-नवम्बर में रामायण पर लेख "दि रीडिल अव द रामायण" बाई सी० जेड० वैद्या एम० ए० एल० एल० बी०" निकला है, उसका सार एक उर्दू पत्र में निकला है, आप भी उसे पढ़कर 'सरस्वती' में उसकी आलोचना अवश्य कीजिए। उक्त लेखक ने महाभारत पर भी लिखा है। कृपाकांक्षी पद्मसिंह (३८) ओम् नायकनगला १५-३-०७ १२-३ का कृपापत्र मिला, कृतार्थ किया, वि० दे० च० विषयक औदार्य के लिए अनेक धन्यवाद । अच्छा, अब से उसे हम मुश्तर्का समझेंगे, जब जरूरत हो आप मंगा लिया करें और जब हमें आवश्यकता हो हमारे पास रहा करे। हमारा विचार है कि उसके उद्धार के लिए निर्णयसागर वालों से निवेदन किया जाय कि उसकी कोई और हस्तलिखित कापी ढूंढकर उसके आधार पर उसे काव्यमाला में निकालें। 'चर्चा' देखने के लिए चित्त उत्कण्ठित है, देखिए वह कबतक नेत्रा- तिथिता को प्राप्त हो। 'बिहारी बिहार' सतसई का संस्कृत अनुवाद-श्रृंगार सप्तशती तथा लालचंद्रिका सहित उसकी एक शुद्ध प्रति, ये सब हम देखना चाहते हैं, इनके लिए बनारस को लिखते हैं, शायद वहां से ये मिल जायं, क्या कहें सतसई हमें चिपट बैठी, गले. का हार बन गई, देखिए कब इससे पीछा छूटे ! नहीं नहीं, गलती की, यह दूर करने लायक नहीं, यह तो कण्ठ में धारण करने योग्य चीज है। जैन काव्य' को पढ़कर और कहीं-कहीं नोट करके उस पर लिखने का विचार किया था कि इतने में सतसई आ गई, फिर उसने उस ओर ध्यान ही नहीं जाने दिया, यह दशा कर दी-