पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/१४३

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१२८ द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र ___ अब किस पुस्तक के अनुवाद की बारी है ? 'शिषा किसी ने ग्रहण की या अभी नहीं। आज्ञानुसार आगे से श्लोक अलहदा कागज पर ही लिख दिया करूँगा, कुछ अबके भेजता हैं। भाषा या भाव में कमीबेसी का आपको अधिकार है। अब कानपुर में प्लेग का क्या हाल है ? कृपापात्र पद्मसिंह गवर्नमेंट सेन्ट्रल बुकडिपो बंबई को एक रिप्लाई कार्ड अंग्रेजी में लिखकर मालूम तो कीजिए कि विक्रमांक का दूसरा एडीशन निकलेगा कि नहीं। पद्मसिंह (३७) ओम् नायकनगला ९-३-०७ श्रीमत्सु साञ्जलिबन्धं प्रणामाः २४-२ के कृपाकार्ड के उत्तर में फिर विलम्ब हो गया, क्षमा कीजिए। वास्तव में 'विक्रमांक देवचरित' इसी योग्य है कि वह प्रत्येक काव्यरसिक के पास रहे, मैं तो उस पर मोहित हूँ। क्या कोई प्रेस अपनी टीका टिप्पणी सहित उसे अब छपवा नहीं सकता? आपकी 'चर्चा' निकलने पर शायद लोगों का ध्यान उसकी ओर आकृष्ट हो, वह कबतक निकलेगी? यदि वि० च० के पुनः प्रकाशित होने की कोई आशा न दीखेगी तो मैं उसे नकल करने की कोशिश करूँगा। मुझे भी खेद है कि मैं अबतक सतसई के आनन्द से वंचित रहा, 'बिहारी बिहार' 'मैने नहीं देखा, वह सतसई की टीका है या आलोचना? भारतेन्दु बा० हरिश्चन्द्र- कारित पं० परमानन्द कृत संस्कृताआयाछन्दोमय उसका अनुवाद एक बार अजमेर लाइब्रेरी में मैंने थोड़ी देर के लिए देखा था, वह भी अब दुष्प्राप्य है। सतसई के एक दोहे का मुकाबला 'गालिब' के एक शेर से किया है, वह भेजता हूं। सतसई की कोई शुद्ध प्रति मिले तो उससे उत्कृष्ट २ दोहों का संग्रह करके भेजूं। दीवानेहाली का मुकद्दमा बहुत अच्छा है । आपने उसे पढ़ लिया, खूब हुआ। हाली का चित्र और संक्षिप्त चरित 'सरस्वती' में अवश्य निकालिए। १. पेंसिल से लिखा है।