है कि या तो वह आपको मिला नहीं, या आप नेत्र रोग से पीड़ित हैं, कृपया लिखिए क्या दशा है।
ठा० शिवरत्नसिंह जालन्धर में ही हैं। वहीं शिक्षा भेजिए।
कृपापत्र मिल गया। उत्तर फिर दूँगा। ठाकुर साहब को क० म० विद्यालय
के पते से पुस्तक भेजिए।
४-११ का कृपापत्र मिला, आनन्दित और अनुगृहीत किया, यह मेरे लिए
सौभाग्य और हर्ष की बात है कि मेरे पत्रों में श्रीमान् को मनोरंजकता प्रतीत होती है, परन्तु यथार्थ बात यह है कि-
"परगणपरमाणून् पर्वतीकृत्य नित्यं
निजहृदि विकसन्तः सन्ति सन्तः कियन्तः।"
मैंने मालूम कर लिया है, ठा० शिवरत्न सिंह जालन्धर में ही हैं। वहीं उन्हें पुस्तक भेज दीजिए।
यदि शंकर जी से मेरा परिचय होता तो मैं जरूर उनसे सिफारिश करता। अच्छा, 'दर आयद् दुरस्त आयद्।'
कादियानी के विषय में यदि सम्पादक 'आर्य मुसाफिर' ने नोट्स भेज दिये तो मैं जरूर लिखूँगा और यथाशक्य मजहबी बातों से परहेज करता हुआ शिष्टता का ध्यान रक्खूँँगा, पर कादियानी जैसे आदमी पर कुछ लिखते हुए इन बातों से बचना ऐसा ही है, जैसा कोयलों भरी कोठरी के अन्दर पहुंच कर कपड़ों को कालिमा से बचाए रहना, या बम्पुलिस में बैठकर नाक को दुर्गन्ध से सुरक्षित रखना!! यह श्री गर्ग जी का ही काम था, शायद उनमें यह शक्ति इसलिए आ गई है, कि वह 'कृष्णसानी 'मसीह मौरुद' 'पैगम्बर आखिर उज्जमा' का पावन चरित और उनकी