पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/१३०

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पं० पद्मसिंह शर्मा जी के पत्र द्विवेदी जी के नाम ११५ के जन्म के कुछ दिनों बाद इसी के अनुकरण में निकाला गया है, पत्र अच्छा है। वह कभी कभी अपने प्रसिद्ध २ नामे निगारों की तसवीरें दिया करता है, यह क्रम है भी अच्छा । आप भी क्यों न 'सरस्वती' में अपने लेखकों के चित्र दिया कीजिए? लेखकों का उत्साह भी बढ़ेगा और परस्पर इस प्रकार परिचय भी हो जायगा। ___ 'आरमी प्रेस' का नोटिस पढ़ा और समझा। मैं इस विषय में फिर आपको लिखने वाला ही था। पुस्तक प्रेस से कबतक निकल जायगी? 'भारतमित्र' के उपहार से पहले नहीं तो उसके साथ २ जरूर निकलनी चाहिए। ऐसा प्रयत्न होना चाहिए जिससे 'सरस्वती' के प्रत्येक ग्राहक के पास वह पहुँच जाय । 'सरस्वती' की ग्राहक संख्या अब कितनी है ? ___आपको याद होगा हमने एक बार आपसे 'बंगवासी' आदि के वह फायल मांगे थे जिनमें भारतमित्र के उस लेख का उत्तर था, क्या वह सब मसाला इस पुस्तक में पढ़ने को मिल जायगा? इस विषय का कोई उपादेय मजमून किसी पत्र में रह न जाय, यह ख्याल रहे। राघवेन्द्र ने मालूम होता है भारतमित्र की खूब खबर ली है, वह रमताराम की चिट्ठी से बेतरह घबराया है, मालूम है यह रमताराम कौन है?-एक कृपण राजा को किसी कवि ने कैसा शर्मिन्दा किया है, देखिए- "मागाः प्रत्युपकार कातरधिया वैमुख्यमाकर्णय हे कर्णाट वसुन्धराधिपः सुधासिक्तानि सूक्तानि मे। वर्ण्यन्ते कति नाम नार्णवनदी भूगोल विन्ध्याटवी- झंझामारुत चन्द्रमाःप्रभृतयस्तेभ्यः किमाप्तं मया? ॥" (यदि इसमें मनोरंजकता हो तो सरस्वती में दीजिए) 'विक्रमांक चर्चा' क्या अभी नहीं निकली ? कृपाभिलाषी पद्मसिंह (२९) ओम् नायकनगला २६-१०-०६ श्रीमत्सु सादरं प्रणामाः आपके १०-१० ता. के कृपापत्र का उत्तर आज लिखने बैठा हं.? अबके हमें मौसमी बुखार ने बड़ा परेशान रखा, अपनी सेवा-शुश्रूषा के सिवा. और काम