पृष्ठ:द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र.djvu/११५

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१०० द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र हुआ कि अब तक प्रकाशित क्यों नहीं हो सका? ऐसी अपूर्व और शिक्षाप्रद पुस्तक जितनी जल्दी प्रकाशित हो उतना ही अच्छा। इस विषय में मैंने जितनी उर्दू की पुस्तकें पढ़ीं है, कई अंशों में उन सब.से इसे अच्छा पाया, फिर उन्हें देखे, इसमें अश्लीलता की तो गन्ध भी नहीं। क्या कोई देशहितैषी और उदार पुरुष ऐसा नहीं मिल सकता जो उन सब आपत्तियों को जिनकी कि इसके प्रकाशित होने में आशंका है अपने ऊपर लेकर इसे प्रकाशित कर दे? ऐसा करने से निःसन्देह आर्यजाति और हिन्दी भाषा का बड़ा ही उपकार हो। ____ अपनी तबीयत का हाल लिखिए अब कैसी है? परमात्मा कर, यह पत्र आपको सर्वथा स्वस्थचित्त पावै। दयनीय- पद्मसिंह यदि कभी इलाहाबाद जाने का इत्तफाक हो और यहाँ से रीडर्स मिल सकें तो ध्यान रखिए। पद्मसिंह ओम् नायकनगला पो० चान्दपुर २०-१-०६ श्रीमत्सु सादरं प्रणामाः श्रीमान् का ११-१ का कृपापत्र मिला। आनन्दित किया। बहुत अच्छा। 'जवाबेजाहलां बाशद खमोशी' पर ही अमल कीजिए। पर 'भाषा और व्याकरण' के सिलसिले को अभी जारी रखिए। समालोचना विषयक कविताओं को अवश्य प्रकाशित कीजिए। वही इनका समुचित उत्तर होगा। ___'वन्देमातरम्' वाले श्लोकों का निर्णय मुझे देखने को नहीं मिला। वह आपने किसके पास भेजा था? ठाकुर साहब के उन पुस्तकों के अनुवाद का क्या हुआ? क्या 'शिक्षणमीमांसा' शुरू कर दिया? मैं अब जालन्धर नहीं जाऊंगा। कारण यह हुआ कि मैं एक आवश्यक कार्य के 'लिए १०-१५ दिन के वास्ते आया था। उसके पीछे माता जी बीमार हो गई तथा