द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र मैं निहायत शर्मिन्दा हूँ कि आपके हुक्म की तामील अबतक नहीं कर सका। यद्यपि मैं प्रयत्न उसी समय से कर रहा हूँ। अब आप यह पत्र पाते ही जैसा उचित -समझिए लिखिए। मैं आपका पत्र आने तक लाहौर जाने से रुका हुआ हूँ। पट्टी न पहुंचने से आपको अबतक इन्तजार करने में जो कष्ट हुआ है उसके लिये फिर क्षमा मांगता हूँ। सरस्वती में न सही किसी अन्य पत्र में ही 'देशोपालम्भ' को प्रकाशित कराइए। उत्तराभिलाषी पसिंह (१४) ओम् जालन्धर शहर १३-११-०५ श्रीमत्सु प्रणामाः कृपाकार्ड मिला। आज बादामी रंग की पट्टी मिल गई। पट्टी धारीवाल की है। खालिस ऊन है और नई है। मुझे तो पसन्द आई। देखिए, आप पसन्द करते है कि नहीं। यदि पसन्द न आवे तो बिला तकल्लुफ लिखिए, चाहे वापस भेज दीजिए। जैसी (असली-काबुली) सुतरी पट्टी की तलाश में इतना सुदीर्घ विलम्ब हुआ। मालूम करने पर पता लगा कि वैसी पट्टियां लाहौर और अमृतसर में भी नहीं मिलती हैं। इसलिए इस पर ही कनाअत करनी पड़ी। टोपी अभी तक वैसी नहीं मिली। किश्तीनुमा मिलती हैं। उसके लिए कुछ और समय दीजिए। लाहौर या अमृतसर से लेकर भेजूंगा। पट्टी भेजने में बहुत अतिकाल हो गया है जिसके लिये मैं बहुत ही शर्मिन्दा हूँ। विलम्ब होने के ही कारण से टोपी का इन्तजार नहीं किया। यदि पट्टी पसन्द आ जाय तो आप इसका सूट तैयार कराइए। टोपी भी पहुँच जायगी। पट्टी ३ गज २ गिरह है। आशा है आपके पूरे सूट के लिए काफी होगी। बिल्टी पत्र के साथ भेजता हूं। पहुंच लिखिए। ठाकुर साहब बाहर गये हैं। उनके आने पर अनुवाद के बारे में लिखूगा। पण्डित जी! आप संस्कृत मासिक पत्र 'विद्यालय को देखते रहे हैं ? मेरे पास उसका
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