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द्विवेदीयुग के साहित्यकारों के कुछ पत्र


की आवश्यकता पड़े। हिन्दी व्याकरण रख लिया है। उन्हें दिखाकर १५ दिन के पश्चात् आपके पास भेजूँँगा। १ भाषा और व्याकरण, २ विक्रमांकदेव, ३ शिक्षाण मीमांसा रजिस्टरी कराके भेजता हूँ।

नितान्त अनुगृहीत-
 
पद्मसिंह
 


(१०)
ओम्
जालन्धर शहर
 
९-१०-०५
 
भगवन्नमस्ते
 

कृपापत्र, टोपी की माप और १० रु० का मनीआर्डर ये सब मिले। पट्टी भेजने के लिए जिन साहब को पहले से कह रक्खा था न जाने किस कारण उन्होंने न अबतक पट्टी भेजी और न कुछ उत्तर ही दिया। इसलिए आज फिर ला० मुन्शीराम जी से एक अन्य महाशय को पट्टी भेजने के लिये लिखवाया है, आशा है ८-१० दिन में आ जायगी। विलम्ब के लिए क्षमा कीजिए, मजबूरी है।

आप यह क्या कहते हैं। मैं तो अपना परम सौभाग्य समझता हूँ कि आप मुझसे ऐसी ऐसी सेवा कराते रहें। आपने रुपये यों ही भेज दिये। कुछ आवश्यकता न थी। अच्छा फिर देखा जायगा। जहाँ को आपने लिखा है, यदि वहाँ से 'शिक्षण मीमांसा' मिलै तो आप उसे अभी वापस न कीजिए। जबतक आवश्यकता हो उसे अपने पास रहने दीजिए।

विक्रमांक में जो दो श्लोक मैने लिखकर रखे हैं उनमें से एक 'वामसौदिवसोन' तो निर्णयसागर वाले 'अमरूशतक' के परिशिष्ट में है, और दूसरा बल्लभदेव संगृहीत 'सुभाषितावलि' में है। वह वहाँ पर किसके नाम से उद्धृत हुआ है यह याद नहीं रहा। विक्रमांक में बिल्हण ने बाणभट्ट का अनुसरण कई स्थानों पर किया है। विक्रम के नगरप्रवेश करते समय जहाँ 'पौरांगना विभ्रमचेष्टा' का उल्लेख है, उसमें कादम्बरी वाले चन्द्रापीड की छाया स्पष्ट झलकती है तथा जहाँ विक्रम ने अपने पिता की मृत्यु पर शोक किया है 'कथं वासंधरिष्यन्ते ता दशाः परमाणव।' इत्यादि वहां 'हर्षचरित' के इस स्थल का साफ साफ अनुकरण किया गया है जहां कि हर्ष-