पं० पसिंह शर्मा जी के पत्र द्विवेदी जी के नाम ८५ व्याकरण बनाने के लिये जिन बातों की आवश्यकता है, वे सब आपमें हैं। सामग्री और अवकाश की कमी अलबत्ता हो सकती है। यह ठीक है कि आपसे बहुत से कामों के लिये प्रार्थना की जाती है और निस्सन्देह आप कर भी बहुत कुछ रहे हैं। परन्तु फिर भी आपके सिवा और कहें किससे? अभागे हिन्दी साहित्य को तो केवल एक आपका ही सहारा है और बस। 'भाषा और व्याकरण' विषयक प्रबन्ध को अवश्य लिखिए। हमें आशा है कि वह हिन्दी व्याकरण की भूमिका होगी। और जब भूमिका बन गई तब व्याकरण भी किसी न किसी दिन बन ही जायगा। परमात्मा से प्रार्थना है कि इस काम में आपको पूरी सफलता प्राप्त हो। ___ ला० बदरीदास आजकल काश्मीर यात्रा के लिये गये हैं। मुझे ला० देवराज जी से कोई खास जाती अदावत नहीं है। हां, उनकी रद्दी पुस्तकों को साहित्य के गले पर छुरी फेरते देखकर जी जरूर जलता है। यदि लाला साहब अपनी पुस्तकों को उठाकर या उनका उचित रीति से संशोधन कराकर अपने आपका प्रायश्चित कर लें, तो अच्छा हो, यही मेरा अभिप्राय है। देखिए ला० बदरीदास आपकी चिट्ठी पर क्या कारवाई करते हैं। इसको और देखलें, फिर सोचेंगे कि क्या करें। आपसे एक सम्मति लेनी है। मेरी एक रिश्तेदार लड़की मेरे पास रहकर विद्यालय में पढ़ने के लिए तीन चार दिन से यहाँ आई है। हिन्दी पढ़ लिख लेती है। बुद्धि अच्छी है और पढ़ने की प्रबल उत्कण्ठा है। विद्यालय की पढ़ाई का अनुमान तो उसकी पुस्तकों से ही आपने कर लिया होगा। ऐसी दशा में उसे कौन सी पुस्तकें पढ़ानी उपयोगी होगी? हिन्दी में कौन सा व्याकरण पढ़ाया जाय? और हिन्दी साहित्य में क्या पढ़ावें? प्रत्येक उपयुक्त विषय के एक एक दो दो पुस्तकों का नाम और पता बताने की कृपा कीजिए। ' आपने एक छोटी सी खिदतम मेरे सुपुर्द की है। इससे मैं बहुत ही खुश हुआ। मैं यथाशक्ति प्रयत्न करूंगा कि रावलपिण्डी से एक अच्छी पट्टी आपके लिये मंगा कर भेजूं। यदि वहां से न मंगा सका तो फिर लाहौर तो पास ही है। टोपी का नमूना आप पहले से भेज दें। रुपयों की जरूरत नहीं। फिर देखा जायगा। विक्रम चर्चा के सुभाषितों का संग्रह अभी बाकी रहता है। इस कारण न भेज सका। दयाकांक्षी पद्मसिंह
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