'एक कुणबी पटेल चोखावालो ८७ भावप्रकाश-यामें यह जतायो, जो - दीनता ते लाई भेट प्रभु मांगि के प्रेम सो अंगीकार करत हैं। वार्ता प्रसंग-२ और एक समे श्रीगुसांईजी पोथी खोलि कथा कहत हते और वैष्णव बैठे हते। तव श्रीगुसांईजी श्रीमुख तें कहे, जो- सुनिवेवारो वेष्णव आवे तो वांचों। तव सव वेणव आपुस में देखें, जो- कौन रह्यो है ? तब वह वैष्णव चोखावारो आयो । तव आपु कथा कहे । तव तहां एक वैष्णव ढीट सो हतो । सो वाने श्रीगुसांईजी सों विनती करी, जो- महा- राज ! और तो कोऊ वैष्णव आयो नाहीं। एक यह दुर्बल मजूर सो वेष्णव आयो है। तव आप कथा कही। सो कहा कारन ? तब श्रीगुसांईजी कहे, जो - जाके मन में अहंकार है द्रव्यादिक को सो हमारे ह्रदय को हार्द न समुझेगो। यह निरहंकार है तातें हमारो वैष्णव है । या प्रकार श्रीगुसांई- जी कहे। तव सव वैष्णव लज्जा पाइ के चुप होइ रहे । या प्रकार वा वैष्णव पर श्रीगुसांईजी कृपा करते । भावप्रकाश-~-यामें यह जतायो. जो - अहंकार भगाम में बाधक है। घाताप्रसग-३ और एक समें वेई आठ जने श्रीनाथजीद्वार आए । तहां सात संपन्न वैष्णव सबन सौं मिलाप उन को बोहोत हुतो । सो तो एक आछी ठौर उतरे. जॉय के। और वह गरीब वाकों कौन पूछे ? सो वह वैष्णव मुग्यो प्यासो उहां घाट पै परि रह्यो । सो वेसोई तो वह दुर्वल. तसोई मीत, सो धूजन लाग्यो। सो वाकी . ताप श्रीनाथजी सौ सयो न गयो । सो श्रीनाथजी अर्द्धरात्रि के ममय महाप्रसाद और जल और आपके ओडिवे
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