८६ दोसौ चावन वैष्णवन की वार्ता सो वह वैष्णव श्रीगुसांईजी को ऐसो कृपापात्र भगवदीय हतो। तातें इनकी वार्ता को पार नाहीं, सो कहां तांई कहिए। वार्ता ॥ ९९॥ अब श्रीगुसांईजी को सेवक एक कुनयी पटेल, निकिचन, गुजरात में रहतो, तिनकी वार्ता को भाव कहत है- भावप्रकाशः-ये सात्विक भक्त हैं । लीला में इन को नाम 'सत्या' है । ये पहिले द्वारिका लीला में 'तन्मध्या' की सखी ही। उन तें प्रगटी है, तातें उन के भावरूप है। ये जा प्रकार ब्रजलीला में अंगीकार भई सो वात ऊपर कहि आए हैं। ये गुजरात में कुनवी पटेल के घर जन्म्यो । सो एक समै श्रीगुसांईजी आप द्वारिकाजी पधारे। सो वा गाम में डेरा किये । तब ये कुनवी पटेल वरस बीस को हुतो। सो त्रैष्णवन के संग ते सरनि आयो। और यह निष्किचन हुतो । याके माता-पिता कोऊ नाहीं । घर में इकलो ई रहे । सो एक समै श्रीगुसांईजी के सात सेवक द्रव्यपात्र को संग वा माम तें श्रीगोकुल को चल्यो। श्रीगुसांईजी के दर्सनार्थ । तव या कुनवी वैष्णव के मन में आई, जो श्रीगुसांईजी के दरसन किये बोहोत दिन भए । तातें श्रीगोकुल जाई श्रीगुसांईजी के दरसन करों तो आछौ । ऐसो विचारि कै यह कुनवी वैष्णव हू वा संग में श्रीगोकुल को चल्यो। सो वाके पास थोरे से चोखा हते । और तो कछु हतो नाहीं । सो वह चोखा संग लिये । मन में कहें, जो - ये श्रीगुसांईजी को भेंट करोंगो। या प्रसंग-१ सो श्रीगुसांईजी के सेवक आठ सो श्रीगोकुल आए। तामें सात वैष्णव तो द्रव्यपात्र हुते । तिन तो श्रीगुसांईजी कों भेंट धरी । और वह एक निष्कंचन वैष्णव हतो । ता पास भेंट को थोरेसे चोखा हते । सो उन चोखान को वह वैष्णव' छिपाए राखे हते । सो श्रीगुसांईजी ने आपु वा वैष्णव तें मॉगि लीने । पाठे उन चोखान में ते थोरे से श्रीनवनीत-- प्रियजी की रसोई में दीने । और थोरेसे चोखा श्रीगोवर्द्धन, नाथजी के इहां तरहटी में पठाय दिये ।
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