खी-पुरुष क्षत्री, जो साड़ी वेचि के सामग्री लाये वचनरचनोदारहाससहजस्मितामृतचयैरार्तिभरमपनयन् । पालय सदास्मानस्मदीयश्रीविठ्ठले निजदास्यमुपनयन ।। ६ ॥ यह पालने की भाव श्रीगुसांईजी चाचा हरिवंसजी सों खोलि के कह्यो । ता समय रेंडा और चाचा हरिवंसजी और श्रीगुसांईजी हते । और कोई नाहीं । सो यह पालने की भाव रेंडा सुनि कै देहदसा भूलि गए । सो तीन दिन तांई रेंडा कों मूर्छा आइ रही। पाछे श्रीगुसांईजी पधारे तव रेडा को चरनामृत दियो । तव रेंडाकों चैतन्यता भई । तव श्रीगुसांईजी ने रेंडा सों पूछी, जो - कहा समाचार है ? तब रेडा ने कही, जो महाराज! अब ऐसे में देह छुटे तो भलो है । फेरि ऐसो समैं नाहीं पांऊगो। तव श्रीगुसांईजी कहे, ऐसोई होइगो । तब रेंडा ने श्रीगुसांईजी को दंडवत् करि कै देह छोरि दीनी। तव श्रीगुसांईजी श्रीमुख तें सराहना करें। सो रेडा श्रीगुसांईजी को ऐसौ कृपापात्र भगवदीय हतो । तातें इनकी वार्ता कहां तांई कहिए ? वार्ता ॥१६॥ अव श्रीगुमाईजी के सेयक ग्री-पुरुष, क्षत्री, गुजगति के, माढी चिके मामग्री ल्याये, तिनकी पार्ता को भाष कदत है- भावप्रकाश-ये साविक भक्त हैं । लीला में पुरुष तो 'रामवाला है। और स्त्री को नाम 'स्यामवाला। ये दोऊ. श्रीचंद्रावलीजी की अंतरंग मखी हैं। 'मुभगा तें प्रगटी है, तातें उनके भावरूप है। ये गुजरात में एक गाम है, तहां दोइ क्षत्रीन के घर पास हुते । नहां जन्म दोऊ लिये । मो उन क्षत्रीन आपुस में कही, जो - अपने बेटा बेटी को चियाह करें तो आछौं । पाठे दोऊ परम आठ-दस के भए तर दोऊन को विराह कियो । ता पाछे केनेक दिन में दोजन के माता पितान की देह हट्टी । पाठे केक दिन में श्रीगुसांईजी द्वारिकाजी पथारे । मो माग्ग में चे श्री-पुप में
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