पृष्ठ:दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता.djvu/७७

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६८ दोसी बावन वैष्णवन की वार्ता कियो । तव नेत्रनमें पानी भरि आयो । जो - अव मोकों श्रीगोकुल की दरसन कव होइगो ? तव आप कहे, जो - तू चिंता मति करे । तू फेरि आवेगो । यह सुनि के रेडा कों कछ धीरज भयो । पाछे श्रीगुसांईजी पोंढें । तव रेडा को मारे दुःख के रात्रि को नीद न आई । सगरी रेनि विचार करत बीती । जो - अब श्रीगुसांईजी की आज्ञा तें देस को तो अवस्य चलनो। पाछे होइगो सो सही। पाठें प्रातःकाल देहकृत्य करि न्हाय मंगला के दरसन किये । तव श्रीगुसांईजी आज्ञा किये, जो - राजभोग-आति के दरसन करि के जैयो । पाठे राजभोग-आर्ति भई सो दरसन करे । ता पाछे श्री- गुसांईजी अनोसर कराय वैठकमें पधारि भोजन करि जूठिन की पातरि रेडा कों धरी । सो महाप्रसाद रेंडा ने लियो । पाठे श्रीगुसांईजी पास आय विनती करी, जो - राज ! ब्याह करि स्त्री का नाम सुनायवे को यहां ल्याऊं ? तव आप कहे, जो व्याह करि पहिले तू ही नाम सुनाइयो । पाछे मैं नाम सुनाउंगो । तव रेंडा दंडवत् करि अपने घर वा डोकरी पास आय सव समाचार कहे । जो मैं देस जात हूं । तव वह डोकरी चुप व्है रही। पाछे भगवद् इच्छा जानि रेंडा अपने श्रीठाकुरजी को संपुट में पधराय वह माला रमनरेती तें पाई हती, तामें तें आधी डोकरी ने राखी हती, सो लैकै डोकरी सों विदा होइ के अपने देस को चल्यो । सो जब कोस चारि गाम बाकी रह्यो तहां एक 'संजाइ' गाम बीचम आयो । सो रात्रि होइ गई । तब रेंडा ने विचार कियो, जो गाम के बाहिर तलाव वोहोत सुंदर है । होइ तो